Thursday 28 August 2014

हमसफ़र सपने

(चित्र गूगल से साभार)
अविरल घूमा करते हैं
हमारे आस-पास
तैरते हैं हर वक़्त
हमारी आँखों में
ख़्वाहिशों और कोशिशों के
एकमात्र साक्षी-सपने

बनते-बिखरते
सुलगते- मचलते
गिरते- संभलते
फूल सा महकते
काँच सा चटकते
हसरतों से तकते
ये बेज़ुबां सपने

अलग-अलग रंगों में
रूपों-आकारों में
आहों-उलाहनों में
गीतों में छंदों में
उदासियों-तसल्लियों में
देहरी पर, आँगन में
रहते हैं साथ-साथ
हैं हमसफर सपने

इन्हीं सपनों को
संजोया था हमने
कभी मन में
इन्हीं सपनों में
तलाशते रहे हम
जीवन के रंग
सपने, कभी हो न सके पूरे
रह गए हर बार अधूरे  
फिर भी बुनते रहें हम
सपनों की सतरंगी झालर
उम्मीदें चूमती रहीं
सपनों का माथा
वक़्त कतरता रहा
सपनों के पर
टूटते-दरकते रहे
सपने दर सपने
बिखरती रहीं ख़ुशियाँ तमाम
टूटते रहे धैर्य और विश्वास

ओह! ये रेज़ा-रेज़ा सपने।

© हिमकर श्याम



Thursday 14 August 2014

क्या जश्ने आज़ादी

(चित्र गूगल से साभार) 

तड़प रही आबादी
क्या जश्ने आज़ादी

जन-गण में लाचारी
भूख  और बेकारी
हर आँखें फरियादी
क्या जश्ने आज़ादी

दर्द और तक़लीफ़ें   
टूट रही उम्मीदें
मुश्किलें बेमियादी
क्या जश्ने आज़ादी

ना बिजली, ना पानी
नित मारती गिरानी
खुशियाँ लगे मियादी
क्या जश्ने आज़ादी

यह मजहबी दरारें
जाति, धर्म, दीवारें 
हुकूमत में फ़सादी
क्या जश्ने आज़ादी

आगे-पीछे घातें
आतंक की बिसातें
बैचैन ज़िन्दगानी
क्या जश्ने आज़ादी

शहर शहर बंजारे 
गरीबों की कतारें
ज़ख्मों के सब आदी
क्या जश्ने आज़ादी

सत्ता की मनमानी
रिश्वत बेईमानी
अब दागदार खादी
क्या जश्ने आज़ादी

केवल सिसकियाँ रहीं
कुछ तब्दीलियाँ नहीं
काग़ज़ी कामयाबी
क्या जश्ने आज़ादी

अंदाज़ बदलता है
बस ताज़ बदलता है
जाती नहीं गुलामी
क्या जश्ने आज़ादी

हर तरफ तंगहाली
दूर अभी खुशहाली
हो जंग की मुनादी
क्या जश्ने आज़ादी

 © हिमकर श्याम

[जयहिन्द, आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!]