Saturday 13 September 2014

हिंदी अपनी शान हो


आज़ादी बेशक़ मिली, मन से रहे गुलाम।
राष्ट्रभाषा पिछड़ गयी, मिला न उचित मुक़ाम।।

सरकारें चलती रहीं, मैकाले की चाल।
हिंदी अपने देश में, उपेक्षित बदहाल।।

शिक्षा, शासन हर जगह, अंग्रेजी राज।
निज भाषा को छोड़कर, परभाषा पर नाज।।

मीरा, कबीर जायसी, तुलसी, सुर, रसखान। 
भक्तिकाल ने बढ़ाया, हिंदी का सम्मान।। 

देश प्रेमियों ने लिखे, थे विप्लव के गान।
इष्ट क्रांति की चेतना, हिंदी का वरदान।।

हिंदी सबको जोड़ती, करती है सत्कार।
विपुल शब्द भण्डार है, वैज्ञानिक आधार।।

स्वर व्यंजन के मेल का, नहीं है कोई जोड़। 
देवनागरी को कहें, ध्वनि शास्त्री बेजोड़।। 

बिन हिंदी चलता नहीं, भारत का बाज़ार।  
टी .वी., फिल्मों को मिला, हिंदी से विस्तार।। 

भाषा सबको बाँधती, भाषा है अनमोल।
हिंदी उर्दू मिल गले, देती हैं रस घोल।।

सब भाषा को मान दें, रखें सभी का ज्ञान। 
हिंदी अपनी शान हो, हिंदी हो अभिमान।। 

हिंदीजन मिल कर करें, हिंदी का उत्थान।
हिंदी हिंदुस्तान की, सदियों से पहचान।।
© हिमकर श्याम  

(चित्र गूगल से साभार)

[आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !!]