Saturday 23 February 2019

जन्नत लहूलुहान


घाटी में षड्यंत्र से, दहला हिंदुस्तान 
सहमे पेड़ चिनार के, जन्नत लहूलुहान

बिना युध्द मारे गये, अपने सैनिक वीर 
आहत पूरा देश है, हृदय-हृदय में पीर

पत्नी बेसुध है पड़ी,बच्चा करे विलाप
अम्मा छाती पीटती, मौन खड़ा है बाप

रक्त वर्ण झेलम हुई, क्षत-विक्षत है लाश
कितनी गहरी वेदना, फफक रहा आकाश

निगरानी की चूक से, आतंकी आघात
हमले की फ़िराक़ में, दुश्मन थे तैनात

घात नहीं यह जंग है, अब तो हो प्रतिकार
साजिश में तल्लीन जो, उनपर भी हो वार

कब तक दूध पिलाएगा, बुरे इरादे भाँप
डँसते हैं हर बार ही, आस्तीन के साँप

ग़म गुस्सा आक्रोश है, पीड़ा अतल अथाह
राजनीति करती कहाँ, इन सब की परवाह

कश्मीरी से बैर क्यों, आख़िर क्या है दोष 
उन्मादी इस दौर में, बचा रहे कुछ होश 

दहशतगर्दों के लिए, क्या मजहब क्या जात
अगर हुकूमत ठान ले, क्या उनकी औक़ात


© हिमकर श्याम 

(चित्र unsplash से साभार)


Thursday 14 February 2019

हिज्र की रात तो ढली ही नहीं



हिज्र  की रात तो ढली ही नहीं
वस्ल की  आरज़ू गई ही नहीं

मेरे दिल में थी बस तेरी चाहत
आरजू  और कोई थी  ही नहीं

मैंने तुझको  कहाँ  नहीं  ढूँढा
यार तेरी ख़बर मिली ही नहीं

इश्क़ से थी हयात में लज़्ज़त
ज़िन्दगी बाद तेरे जी ही नहीं

मिन्नतें इल्तिज़ा  न कम की थी
बात लेकिन कभी सुनी ही नहीं 

काश कोई सुराख़ मिल जाये
बंद कमरे में  रोशनी ही नहीं

उससे कोई  उमीद मत रखना
वो भरोसे का आदमी ही नहीं

हर जगह देखता तेरी सूरत
फ़िक़्र से दूर तू गई ही नहीं

इक अज़ब सा सुकूत है  हिमकर
बात बिगड़ी तो फिर बनी ही नहीं


© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)


Monday 11 February 2019

श्वेत चतुर्भुज रूप



पद्मासिनि वागीश्वरी, श्वेत चतुर्भुज रूप
पुस्तक वीणा हाथ मे, बुद्धि ज्ञान प्रतिरूप

प्राणी को वाणी मिली, सुन वीणा की नाद
मौन सृष्टि करने लगी, आपस में संवाद


© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)

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Thursday 7 February 2019

गुलाब की बातें




वो हया,वो हिजाब की बातें
उसके हुस्नो शबाब की बातें
बाग में जो निखार लाया था
याद है उस गुलाब की बातें


         © हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)




Monday 4 February 2019

जीवन : तीन सेदोका


(एक)

रात अँधेरी
कान्तिमय दीपक
कंपित प्रज्वलित
खड़ा अकेला
सुख-दुःख संताप
लड़ना चुपचाप

(दो)

सृजन सीख
ठूंठ पर कोपल
दुःख पे सुख जय
आवाजाही है
पतझड़ वसंत
हंसते रोते जन

(तीन)

लघु जीवन
कंटकित डगर
कोशिशें बेअसर
व्यथित मन
हारे बैठे क्यूँ भला
सीखें जीने की कला


[सेदोका जापानी कविता की एक शैली है]

© हिमकर श्याम



(चित्र गूगल से साभार)