(एक)
रात अँधेरी
कान्तिमय दीपक
कंपित प्रज्वलित
खड़ा अकेला
सुख-दुःख संताप
लड़ना चुपचाप
(दो)
सृजन सीख
ठूंठ पर कोपल
दुःख पे सुख जय
आवाजाही है
पतझड़ वसंत
हंसते रोते जन
(तीन)
लघु जीवन
कंटकित डगर
कोशिशें बेअसर
व्यथित मन
हारे बैठे क्यूँ
भला
सीखें जीने की कला
[सेदोका जापानी
कविता की एक शैली है] 
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
![शीराज़ा [Shiraza]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHlTlgfra8mr_WMUE0ZuO_wX8IURGkJNe2nvpSRsJkeGhyphenhyphenF9w9jl9uzq5YLVqMftwgK57KlSjaIUq9ClwF3Nnns8thhEDmEuEX6fPnArCDwvODZrW4hGkQ6jZBM4C_YI7F9T2e-348TRc/s1600-r/sep+22.jpg) 

 
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज मंगलवार (05-02-2019) को "अढ़सठ बसन्त" (चर्चा अंक-3238)
ReplyDeleteपर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत अच्छा
ReplyDeleteसस्नेहाशीष
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteकुछ बंदिश में भी गहरी बात लिखना ही कला है ...
लाजवाब लिखा है ...
superb!!!!!!!!!
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