एक अघोषित युध्द वह, लड़ती है हर रोज।
नारी बड़ी सशक्त है, सहन शक्ति पुरजोर।।
टूट रही हैं बेड़ियाँ, दिखता है बदलाव।
बेहद धीमी चाल से, बदल रहा बर्ताव।।
अपने निज अस्तित्व को, नारी रही तलाश।
सारे बन्धन तोड़ कर, छूने चली आकाश।।
पूजन शोषण की जगह, मिले ज़रा सम्मान।
नारी में गुण- दोष है, नारी भी इंसान।।
हक की ख़ातिर बोलिए, शोषण है हर ओर।
अपनी ताकत आँकिए, आप नहीं कमजोर।।
■ हिमकर श्याम
नारी शक्ति के सम्मान में बहुत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०९ -०३-२०२३) को 'माँ बच्चों का बसंत'(चर्चा-अंक -४६४५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन
ReplyDeleteमहिला दिवस पर सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर सटीक सामायिक सृजन।
ReplyDeleteसुंदर सार्थक सामायिक सृजन।
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति !
ReplyDeleteसारे बन्धन तोड़ कर, छूने चली आकाश।।
ReplyDeleteनारी विमर्श पर बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। शानदार दोहे।