धरा रोशनी
में हो जैसे नहाई 
दिवाली की
रौनक हरेक ओर छाई 
उमंगों की
किरणें झलकने लगी हैं 
नयी ज्योति
आशा की जलने लगी हैं 
रंगोली से
हमने ये चौखट सजाई  
ग़मों से ही
छनकर निकलती हैं खुशियाँ 
हमें मिलके
करनी है तम की विदाई 
है महलों
में जगमग, अँधेरी है बस्ती 
कहीं मौज-मस्ती, कहीं जान सस्ती 
अमीरी
गरीबी की गहरी है खाई 
न बाकी बचे अब कहीं भी अँधेरा
न उजड़े
कहीं भी किसी का बसेरा 
कहीं कोई
आंसू न दे अब दिखाई 
नहीं मिट
सकी है जिनकी उदासी 
चलो उनमें
बांटे हंसी हम जरा सी 
मिले अब अमावस
से सबको रिहाई 
खड़ा
आँधियों में अकेला ये दीपक 
अंधेरों से
लड़ना सिखाता है दीपक
मुश्किलों
से डरना नहीं मेरे भाई 
मिटे आह
पीड़ा, जलें हर बलाएँ  
तहे दिल से
देते हैं सबको बधाई  
हिमकर
श्याम
(चित्र
गूगल से साभार) 
![शीराज़ा [Shiraza]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHlTlgfra8mr_WMUE0ZuO_wX8IURGkJNe2nvpSRsJkeGhyphenhyphenF9w9jl9uzq5YLVqMftwgK57KlSjaIUq9ClwF3Nnns8thhEDmEuEX6fPnArCDwvODZrW4hGkQ6jZBM4C_YI7F9T2e-348TRc/s1600-r/sep+22.jpg) 

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बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteदिल को छूनेवाली कविता ...
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteदिल को छूनेवाली कविता
ReplyDeleteसादर आभार
DeleteSUPERB :) VERY HEART TOUCHING WORDS
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
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