| 
 
(चित्र गूगल से साभार) 
 
 
 
 
 
 
सावन में धरती लगे, तपता रेगिस्तान   
सूना अम्बर देख के, हुए लोग हलकान   
 
कहाँ छुपे  हो मेघ तुम, बरसाओं अब नीर   
पथराये हैं नैन ये,  बचा न
मन का धीर 
 
बिन पानी व्याकुल हुए, जीव-जंतु इंसान  
अपनी किस्मत कोसता, रोता बैठ किसान   
 
सूखे-दरके खेत हैं, कैसे उपजे धान   
मॉनसून की मार से, खेती को नुकसान  
 
खुशियों के लाले पड़े, बढ़े रोज संताप   
मौसम भी विपरीत है, कैसा यह अभिशाप  
 
सूखे पोखर, ताल सब, रूठी है बरसात   
सूखे का संकट हरो, विनती सुन लो नाथ       
 
 
© हिमकर
श्याम   
 
 
 
 | 
समसामयिक भाव..... अब तो बरसें मेघा
ReplyDeleteहार्दिक आभार...
Deleteसूखे-दरके खेत हैं, कैसे उपजे धान
ReplyDeleteमॉनसून की मार से, खेती को नुकसान ...
सभी दोहे लाजवाब ... मानसून की कमी खल रही है धरती को .. कलम को ....
अब तो टप टप बरसो ...
सही कहा आपने...शुक्रिया...
Deleteबहुत सुन्दर और प्रभावी दोहे...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ...सादर !
Deleteअच्छी रचना.
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteसार्थक दोहे।
ReplyDeleteसादर अभिवादन...प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार!
Deleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteहार्दिक आभार!
Deleteउत्साहवर्धन हेतु आपका आभारी हूँ...
ReplyDeleteशुक्रिया...
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
ReplyDeleteखुशियों के लाले पड़े, बढ़े रोज संताप
ReplyDeleteमौसम भी विपरीत है, कैसा यह अभिशाप
............. सुन्दर और प्रभावी दोहे...