Friday 29 November 2013

बिटिया


खुशबुएँ बिखरी हवा में
है चहक उसकी फिजा में
नर्म नाजुक इक कली सी
और चँचल है नदी सी
वो हँसे तो चाँद हरसे
आसमां से नूर बरसे
वो बला की खूबसूरत
ख़्वाब है या है हकीक़त
हर अदा उसकी सुहानी
वो लगे परियों की रानी
बज उठा है साज सारा
खिल गया आँगन हमारा
माँ लिए बाँहों के झूले
तक रही हर दर्द भूले
घर में रौनक लायी गुड़िया
है बड़ी अनमोल बिटिया    
 हिमकर श्याम



  
( 22  नवंबर को हमारे घर में एक नन्ही परी आई है, बिटिया आई है. रविकर, लता और बिटिया को ढेरों स्नेहाशीष...)  
 

Tuesday 26 November 2013

ब्लैक टोरनेडो



(मुंबई हमले के पाँच साल)

तोड़ सरहद की सारी हदें
लहरों की बंदिशें
एक शाम, अचानक
सपनों के शहर में
आवारा वहशी हवाएं
जागती जगमगाती सड़कों के
चप्पे-चप्पे पर बरपा गयी कहर
ताज, ओबरॉय, सीएसटी
लियोपॉड या कोलाबा
ठिठक गयी हर राहगुजर

बारूदी हवा के घेरे में
रेस्तरा-बाजारें
गरीब निवाले
भुरभुरा जोश
नपुंसक रोष
यहूदियों की बस्तियां
सैलानियों की मस्तियां
चाय की चुस्कियां
अखबार की सुर्खियां
बेबस, बेजार महानगर

छलकते जामों में
भ्रष्ट इंतजामों में
टीआरपी खेलों में
आहों के मेलों में
क्रिकेट मैदानों में
सुरक्षा की सेंधमारी में
नाकाम पहरेदारी में
सस्ती शहादतों में
नाउम्मीद इबादतों में
था खौफ का असर

अदृश्य राहें
नापाक मंसूबे
न ठहराव
न ठिकाना
आतंक के चादर तले
निजात का हर मंत्र
घुटनों पर जनतंत्र
बेलगाम, बेतहाशा
फिजां में घुल रहा
जेहाद का जहर



असहाय, स्तब्ध
राज और राजनीति
स्वार्थ, चालें, रणनीति
निकम्मी सरकार
कपोतों के शांति इश्तिहार
मराठों के झंडाबरदार
मनसे की खींची दीवार
गूंगे-बहरों की कतार
धुआं-धुआं ताज
दहशत भरा समुंदर

ये झुलसी वीरानी
ये सर्द रवानी
ये निर्लज्ज भग्नता
ये अनहद नग्नता
ये भोथरे असलहें
ये खोखले सन्नाहें
ये सुनियोजित साजिशें
ये अपाहिज ख्वाहिशें
मौसमी ये बेदारियां
सालेंगी हमें उम्र भर

इन कागजी इनायतों के
लरजती इबारतों के
सिसकती मजबूरियों के
सिहरती लाचारियों के
दहशत के अफसानों के
सैकड़ों सुखनबर
ऑपरेशन ब्लैक टोरनेडो का
मुख्तसर सा यह फसाना
धरातल पर हर मंजर
पर्दादारी अब बेअसर

साठ घंटे तक मंडराया
अनचाहा वह तूफान
जद्दोजहद, ऊहापोह
धमाके और भगदड़
तारीख का मर्सिया
कामयाबी के कसीदे
करकरे या सालस्कर
चर्चे में घर-घर
इन हवाओं से डर कैसा
जब देखें हो कई बवंडर।

हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)