Wednesday, 8 March 2023

टूट रही हैं बेड़ियाँ


 एक अघोषित युध्द वह, लड़ती है हर रोज।

नारी बड़ी सशक्त है, सहन शक्ति पुरजोर।।


टूट रही हैं बेड़ियाँ, दिखता है बदलाव।

बेहद धीमी चाल से, बदल रहा बर्ताव।।


अपने निज अस्तित्व को, नारी रही तलाश।

सारे बन्धन तोड़ कर, छूने चली आकाश।।


पूजन शोषण की जगह, मिले ज़रा सम्मान।

नारी में गुण- दोष है, नारी भी इंसान।।


हक की ख़ातिर बोलिए, शोषण है हर ओर।

अपनी ताकत आँकिए, आप नहीं कमजोर।।


■ हिमकर श्याम

Friday, 22 April 2022

हरी भरी धरती रहे

 


संकट सिर पर है खड़ा, रहिए ज़रा सतर्क।

बचा हुआ है अब कहाँ, मिट्टी से सम्पर्क।।


हरियाली पानी हवा, पृथ्वी के उपहार।

हर प्राणी के वास्ते, जीवन का आधार।।


कंकरीट से हम घिरे, होगा कब अहसास।

हरी भरी धरती रहे, मिल कर करें प्रयास।।


वसुधा ने जो भी दिया, उसका नहीं विकल्प।

धरा दिवस पर कीजिए, संचय का संकल्प।।


■ हिमकर श्याम

Monday, 4 April 2022

गमक उठे हैं साल वन

 



ढाक-साल सब खिल गए, मन मोहे कचनार।

वन प्रांतर सुरभित हुए, वसुधा ज्यों गुलनार।।


गमक उठे हैं साल वन, झरते सरई फूल।

रंग-गंध आदिम लिए, मौसम है अनुकूल।।


मीन- केकड़ा का यहाँ, पुरखों जैसा मान।

दोनों  के  सहयोग  से,  पृथ्वी  का निर्माण।।


निखरा-निखरा रूप है, बाँटे स्नेह अथाह।

धरती दुल्हन सूर्य की, रचने को है ब्याह।।


मटके का जल देख कर, वर्षा का अनुमान।

युगों पुरानी यह प्रथा, आदिम रीति विधान।।


उत्सव का माहौल है,  शहर हो कि हो गाँव।

ढोल-  नगाड़े  बज रहे,  थिरक रहे हैं पाँव।।


■ हिमकर श्याम