एक अघोषित युध्द वह, लड़ती है हर रोज।
नारी बड़ी सशक्त है, सहन शक्ति पुरजोर।।
टूट रही हैं बेड़ियाँ, दिखता है बदलाव।
बेहद धीमी चाल से, बदल रहा बर्ताव।।
अपने निज अस्तित्व को, नारी रही तलाश।
सारे बन्धन तोड़ कर, छूने चली आकाश।।
पूजन शोषण की जगह, मिले ज़रा सम्मान।
नारी में गुण- दोष है, नारी भी इंसान।।
हक की ख़ातिर बोलिए, शोषण है हर ओर।
अपनी ताकत आँकिए, आप नहीं कमजोर।।
■ हिमकर श्याम