Wednesday, 8 March 2023

टूट रही हैं बेड़ियाँ


 एक अघोषित युध्द वह, लड़ती है हर रोज।

नारी बड़ी सशक्त है, सहन शक्ति पुरजोर।।


टूट रही हैं बेड़ियाँ, दिखता है बदलाव।

बेहद धीमी चाल से, बदल रहा बर्ताव।।


अपने निज अस्तित्व को, नारी रही तलाश।

सारे बन्धन तोड़ कर, छूने चली आकाश।।


पूजन शोषण की जगह, मिले ज़रा सम्मान।

नारी में गुण- दोष है, नारी भी इंसान।।


हक की ख़ातिर बोलिए, शोषण है हर ओर।

अपनी ताकत आँकिए, आप नहीं कमजोर।।


■ हिमकर श्याम

6 comments:

  1. नारी शक्ति के सम्मान में बहुत सुन्दर सृजन ।

    ReplyDelete
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०९ -०३-२०२३) को 'माँ बच्चों का बसंत'(चर्चा-अंक -४६४५) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुंदर सृजन

    ReplyDelete
  4. महिला दिवस पर सुंदर रचना

    ReplyDelete
  5. सुंदर सार्थक सामायिक सृजन।

    ReplyDelete
  6. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति !

    ReplyDelete

आपके विचारों एवं सुझावों का स्वागत है. टिप्पणियों को यहां पर प्रकट व प्रदर्शित होने में कुछ समय लग सकता है.