(बाल दिवस पर)
महानगर की चौड़ी चिकनी सड़़कों पर 
दौड़ती हैं दिन-रात अनगिनत गाड़ियां 
सुस्ताती हैं थोड़ी देर के
लिए 
ट्रैफिक सिग्नलों पर 
जलती हैं जब लाल बत्तियां
सड़क के किनारे खड़े
बच्चे
बेसब्री से करते हैं 
इस लाल बत्ती का इंतिजार
ज्योंही जलती है लाल
बत्ती
भागते हैं रूकती गाड़ियों
के पीछे
खिलौने, किताबें, रंग-बिरंगे फूल
पानी की बोतलें और अखबार लिए
कुछ होते हैं खाली हाथ 
जो मांगते हैं भीख या फिर
अपनी फटी कमीज़ से 
पोछते हैं महंगी गाड़ियां
को   
निहारते है बड़ी उम्मीद से
वातानुकूलित गाड़ियों में बैठे
लोगों को 
जो परेशान हैं लाल बत्ती
के जलने से
कुछ होते हैं दानवीर 
जो थमा देते हैं चंद
सिक्के 
आत्म संतुष्टि के लिए
बाकि फेर लेते हैं मुंह 
बच्चे देखते हैं दूसरी ओर
जल जाती है तभी हरी बत्ती
दौड़ने लगती हैं गाड़ियां 
मायूस लौट आते हैं बच्चे 
सड़क के किनारे और करते
हैं
लाल बत्ती का इंतिजार
चिलचिलाती धूप की
पिघलते कारतोल की
ज़िल्लत-दुत्कार की
परवाह नहीं करते बच्चे
उन्हें होती है फिक्र बस इतनी
कि कैसे भरेगा खाली पेट
जीना चाहते हैं बच्चे 
औरों की तरह जिंदगी  
ढोते हैं मासूम कंधों पर
पहाड़-सा बोझ
सहते हैं रोज यातनाएं 
खेलते हैं खतरों से 
सोते हैं फुटपाथ पर 
जीते हैं बीमार माहौल में
 
ढूंढते हैं सुख का रास्ता
पालते हैं नशे की लत 
वक्त से पहले बड़े हो जाते
हैं 
ट्रैफिक सिग्नलों पर बच्चे
।
हिमकर श्याम 
(चित्र गूगल से साभार)
![शीराज़ा [Shiraza]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHlTlgfra8mr_WMUE0ZuO_wX8IURGkJNe2nvpSRsJkeGhyphenhyphenF9w9jl9uzq5YLVqMftwgK57KlSjaIUq9ClwF3Nnns8thhEDmEuEX6fPnArCDwvODZrW4hGkQ6jZBM4C_YI7F9T2e-348TRc/s1600-r/sep+22.jpg) 


 
Ati samvedansheel, marmic avm dil ko chhoo lene wali kavita
ReplyDeleteहार्दिक आभार...
ReplyDeleteमार्मिक ... सही चित्रण किया है आपने इन मासूमों का ... काश की समाज इन बुराइयों को रोक पाता ...
ReplyDeleteहृदय से आभार
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