मूर्ख बने तो क्या हुआ, रखिए खुद को कूल।
हँसे-हँसाएँ आप हम, डे हैअप्रैल फूल।।
मूर्ख दिवस तो एक दिन, बनते हम सब रोज।
मूर्खों की इस भीड़ में, महामूर्ख की खोज।।
मूर्ख बना कर लोक को, मौज करे ये तंत्र ।।
धोखा, झूठ, फ़रेब, छल, नेताओं के मंत्र।।
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
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बहुत खूब ...
ReplyDeleteसच अहि नेता तो रोज़ ही अप्रेल फूल बनाते हैं और पता भी नहीं चलता ...
अच्छे हैं सभी दोहे ... लाजवाब ...
व्वाहहह..
ReplyDeleteसादर...
:) सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-04-2019) को "मौसम सुहाना हो गया है" (चर्चा अंक-3294) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर दोहों का सृजन ।
ReplyDeleteवाहः वाहः बहुत खूब्।
ReplyDeleteमूर्ख बने तो क्या हुआ, रखिए खुद को कूल।
ReplyDeleteहँसे-हँसाएँ आप हम, डे हैअप्रैल फूल।।
सहज शब्दों में सुन्दर दोहों का सृजन लाजवाब
बहुत सुंदर और सटीक...
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