[आज इस 'ब्लॉग' के चार वर्ष पूरे हो गए। इन चार वर्षों में आप लोगों का जो स्नेह और सहयोग मिला, उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया और आभार। यूँही आप सभी का स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहे यही चाह है। इस मौक़े पर एक ग़ज़ल आप सब के लिए। सादर,]
हर क़दम हौसला
बढ़ाता है
सब्र किस दर्जा काम आता है
ख्वाब देखूँ तो किस तरह देखूँ
नींद से रोज़
वो जगाता है
जिस ने मेरा मकाँ जलाया था
आज वो अश्क़ भी
बहाता है
उस की रहमत पे है
नज़र वर्ना
साथ मुश्किल में कौन आता है
काटिए मत हरा शजर
ऐसे
धूप में सब के काम आता है
हादसे ख़ुद नज़र बचाते हैं
मौत से आँख जो मिलाता है
अपने बाज़ू पे रख यक़ीँ हिमकर
जीस्त का बोझ
जो उठाता है
जीस्त : ज़िंदगी
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
सुंदर शाब्दिक प्रयोजन के साथ सुंदर भावाभिव्यक्ति..
ReplyDeleteकाटिए मत हर शहर ऐसे ...
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब शेर ... ये भी और बाक़ी सब भी ...
बहुत की कमाल के शेर बुने हैं आपने इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल में ...
बधाई चार वर्ष पूर्ण होने पर।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
वाह्ह....लाज़वाब हर शेर👌👌
ReplyDeleteब्लॉग की चौथे जन्मदिवस पर मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार करे श्याम जी।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (05-11-2017) को
ReplyDelete"हारा सरल सुभाव" (चर्चा अंक 2779)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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कार्तिक पूर्णिमा (गुरू नानक जयन्ती) की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीया /आदरणीय, अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है आपको यह अवगत कराते हुए कि सोमवार ०६ नवंबर २०१७ को हम बालकवियों की रचनायें "पांच लिंकों का आनन्द" में लिंक कर रहें हैं। जिन्हें आपके स्नेह,प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन की विशेष आवश्यकता है। अतः आप सभी गणमान्य पाठक व रचनाकारों का हृदय से स्वागत है। आपकी प्रतिक्रिया इन उभरते हुए बालकवियों के लिए बहुमूल्य होगी। .............. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल,
ReplyDeleteब्लॉग के चार वर्ष पुरे होने पर आपको हार्दिक बधाई.
ब्लॉग के चार वर्ष पूरे होने पर बहुत बहुत बधाई आपको . बहुत खूबसूरत गज़ल .
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