नाकामी पर परदा कर
जनता को भरमाया कर
जब मुद्दों की बात उठे
मज़हब में उलझाया कर
भूखों की तादाद बढ़ी
खुशहाली का दावा कर
सीधे साधे लोग यहाँ
ख़्वाब सुनहरे बेचा कर
लफ़्फ़ाज़ी का राजा तू
जुमले यूँ ही फेंका कर
जो भी तुझसे प्रश्न करे
उसके मुँह पर ताला कर
बेबस चीखें कहती हैं
ज़ुल्म न हमपे इतना कर
(चित्र गूगल से साभार)
© हिमकर श्याम
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-12-2017) को "राम तुम बन जाओगे" (चर्चा अंक-2821) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब ...
ReplyDeleteसभी शेर तंत्र पर प्रहार करते हुए ... आज के हालात का सटीक अवलोकन ...
लाजवाब ...
दिनांक 19/12/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
बेहद.उम्दा वाह्ह्ह👌👌
ReplyDeleteवाह!!बहुत खूब।
ReplyDeleteलाजवाब गजल....
ReplyDeleteबेहद सुंदर।
ReplyDeleteबेहतरीन |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteवाह हिमकर जी, जो भी तुझसे प्रश्न करे
ReplyDeleteउसके मुँह पर ताला कर....चेतावनी और सीख दोनों एक ही बार में