यूँ लगे हर दिन हुआ इतवार है
ज़िन्दगी की थम गई रफ़्तार है
ढूँढता था दिल कभी फ़ुर्सत मिले
फ़ुर्सतों ने कर दिया बेज़ार है
है यही बेहतर कि हम घर में रहें
कर रही क़ातिल हवा बीमार है
सरहदों के फ़ासलें मिटते गए
पास आने से मगर इनकार है
एक वबा ने हाल ऐसा कर दिया
क़ैद होकर रह गया संसार है
गुम हुई अफ़वाह में सच्ची ख़बर
चार सू अब झूट का व्यापार है
वह दिखाता है तमाशा बारहा
इक मदारी बन गया सरदार है
सड़कें सूनी, साफ़ नदियाँ-आसमाँ
चहचहों से फिर फ़ज़ा गुलज़ार है
वबा : महामारी
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
सच में रफ़्तार थम गई है संसार की पर समय चल रहा है ...
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब ...
उम्दा, सार्थक और सामयिक ग़ज़ल.....
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteGreat Stuff Man, I Really Like You Article Keep doing Good Work also visit Sandeep Maheshwari Biography In Hindi!
ReplyDeleteThanks
Deleteहार्दिक आभार
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