Sunday, 26 April 2020

हर दिन हुआ इतवार है


यूँ लगे हर दिन हुआ इतवार है
ज़िन्दगी की थम गई रफ़्तार है

ढूँढता था दिल कभी फ़ुर्सत मिले
फ़ुर्सतों ने कर दिया बेज़ार है

है यही बेहतर कि हम घर में रहें
कर रही क़ातिल हवा बीमार है

सरहदों के फ़ासलें मिटते गए
पास आने से मगर इनकार है

एक वबा ने हाल ऐसा कर दिया
क़ैद होकर रह गया संसार है

गुम हुई अफ़वाह में सच्ची ख़बर
चार सू अब झूट का व्यापार है

वह दिखाता है तमाशा बारहा
इक मदारी बन गया सरदार है

सड़कें सूनी, साफ़ नदियाँ-आसमाँ
चहचहों से फिर फ़ज़ा गुलज़ार है


वबा : महामारी 

© हिमकर श्याम 


(चित्र गूगल से साभार)


6 comments:

  1. सच में रफ़्तार थम गई है संसार की पर समय चल रहा है ...
    हर शेर लाजवाब ...

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  2. उम्दा, सार्थक और सामयिक ग़ज़ल.....

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  4. हार्दिक आभार

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