कोरोना से थम गई, दुनिया की रफ़्तार।
त्राहि-त्राहि जग कर रहा, नजरबंद संसार।।
मरहम रखने को गये, लौटे ले कर घाव।
परहित में जो हैं लगे, उन पर ही पथराव।
ओछी हरकत कर रहे, जड़ मति पत्थर बाज।
जाहिलपन वो मर्ज है, जिसका नहीं इलाज।।
ख़तरे में है ज़िंदगी, पड़े न कोई फ़र्क़।
तबलीगी ख़ुद कर रहे, अपना बेड़ा गर्क।।
बहुरंगी इस देश में, उत्सवधर्मी लोग।
जश्न मनाते डूब कर, विपदा हो या रोग।।
ज़हर उगलता मीडिया, फैलाता उन्माद।
टीवी तो हर चीज़ में, ढूँढा करे जिहाद।।
नफ़रत का इक वायरस, फैल रहा चहुँओर।
संकट के इस दौर में, मजहब का ही शोर।।
हिन्दू मुस्लिम में बँटे, बन न सके इंसान।
चाहे कोई पंथ हो, मानव एक समान।।
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 22 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुत सुन्दर
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