Friday 22 April 2022

हरी भरी धरती रहे

 


संकट सिर पर है खड़ा, रहिए ज़रा सतर्क।

बचा हुआ है अब कहाँ, मिट्टी से सम्पर्क।।


हरियाली पानी हवा, पृथ्वी के उपहार।

हर प्राणी के वास्ते, जीवन का आधार।।


कंकरीट से हम घिरे, होगा कब अहसास।

हरी भरी धरती रहे, मिल कर करें प्रयास।।


वसुधा ने जो भी दिया, उसका नहीं विकल्प।

धरा दिवस पर कीजिए, संचय का संकल्प।।


■ हिमकर श्याम

11 comments:

  1. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 24/04/2022 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
  3. पृथ्वी दिवस पर बहुत सुंदर,सार्थक दोहे ।

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्छा

    ReplyDelete
  5. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-04-2022) को चर्चा मंच      "अब गर्मी पर चढ़ी जवानी"   (चर्चा अंक 4413)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    --

    ReplyDelete
  6. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-04-2022) को चर्चा मंच      "अब गर्मी पर चढ़ी जवानी"   (चर्चा अंक 4413)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    --

    ReplyDelete
  7. सुन्दर, सारगर्भित दोहे, बधाई

    ReplyDelete
  8. सुन्दर,सारगर्भित दोहे, बधाई

    ReplyDelete
  9. वसुधा ने जो भी दिया, उसका नहीं विकल्प।
    धरा दिवस पर कीजिए, संचय का संकल्प... बहुत सुंदर।
    सादर

    ReplyDelete
  10. I have to thank you for the efforts you’ve put in writing this site.

    ReplyDelete

आपके विचारों एवं सुझावों का स्वागत है. टिप्पणियों को यहां पर प्रकट व प्रदर्शित होने में कुछ समय लग सकता है.