संकट सिर पर है खड़ा, रहिए ज़रा सतर्क।
बचा हुआ है अब कहाँ, मिट्टी से सम्पर्क।।
हरियाली पानी हवा, पृथ्वी के उपहार।
हर प्राणी के वास्ते, जीवन का आधार।।
कंकरीट से हम घिरे, होगा कब अहसास।
हरी भरी धरती रहे, मिल कर करें प्रयास।।
वसुधा ने जो भी दिया, उसका नहीं विकल्प।
धरा दिवस पर कीजिए, संचय का संकल्प।।
■ हिमकर श्याम
![शीराज़ा [Shiraza]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHlTlgfra8mr_WMUE0ZuO_wX8IURGkJNe2nvpSRsJkeGhyphenhyphenF9w9jl9uzq5YLVqMftwgK57KlSjaIUq9ClwF3Nnns8thhEDmEuEX6fPnArCDwvODZrW4hGkQ6jZBM4C_YI7F9T2e-348TRc/s1600-r/sep+22.jpg) 

 
नमस्ते.....
ReplyDeleteआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की ये रचना लिंक की गयी है......
दिनांक 24/04/2022 को.......
पांच लिंकों का आनंद पर....
आप भी अवश्य पधारें....
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteपृथ्वी दिवस पर बहुत सुंदर,सार्थक दोहे ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-04-2022) को चर्चा मंच "अब गर्मी पर चढ़ी जवानी" (चर्चा अंक 4413) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-04-2022) को चर्चा मंच "अब गर्मी पर चढ़ी जवानी" (चर्चा अंक 4413) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --
सुन्दर, सारगर्भित दोहे, बधाई
ReplyDeleteसुन्दर,सारगर्भित दोहे, बधाई
ReplyDeleteवसुधा ने जो भी दिया, उसका नहीं विकल्प।
ReplyDeleteधरा दिवस पर कीजिए, संचय का संकल्प... बहुत सुंदर।
सादर
I have to thank you for the efforts you’ve put in writing this site.
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