Sunday, 22 December 2013

बहना, बहते ही रहना



क्या तुम जानते हो

मृत अतीत से

चिपटे रहने का दर्द ?

यदि मैं कहूं भी तो

समझ पाओगे तुम

कितने गहरे होते हैं

बीते दिनों के दर्द।



वही-

चेहरे रंग-पुते

घर-आंगन हो या हों

नुक्कड़-चैराहे

नजर आते हैं

चाहे-अनचाहे।



वैसे भी-

कल के उस

बीते हुए कल में

जीना

धर्म नहीं, मूढ़ता है।



चाहिए तो-

हर पल हमें

बहना, बहते ही रहना

जैसे कि बहती है कोई

सदानीरा

जैसे कि बहता है कोई

झरना।

  
हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)
 

3 comments:

  1. great lines.... -

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  2. सुंदर भावपूर्ण पंक्तियाँ ...!

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  3. उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

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