Sunday 17 December 2017

ख़्वाब सुनहरे बेचा कर


नाकामी  पर  परदा  कर
जनता को भरमाया कर


जब  मुद्दों  की  बात  उठे
मज़हब में उलझाया कर


भूखों  की  तादाद  बढ़ी
खुशहाली का दावा कर


सीधे  साधे  लोग   यहाँ
ख़्वाब सुनहरे बेचा कर


लफ़्फ़ाज़ी  का  राजा  तू
जुमले  यूँ  ही  फेंका कर


जो भी  तुझसे  प्रश्न  करे
उसके मुँह पर ताला कर


बेबस  चीखें   कहती   हैं
ज़ुल्म न हमपे इतना कर



(चित्र गूगल से साभार)

© हिमकर श्याम

Friday 3 November 2017

सब्र किस दर्जा काम आता है

[आज इस 'ब्लॉगके चार वर्ष पूरे हो गए। इन चार वर्षों में आप लोगों का जो स्नेह और सहयोग मिलाउसके लिए तहे दिल से शुक्रिया और आभार। यूँही आप सभी का स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहे यही चाह है। इस मौक़े पर एक ग़ज़ल आप सब के लिए सादर,] 


 

हर  क़दम  हौसला  बढ़ाता है
सब्र किस दर्जा काम आता है

ख्वाब देखूँ तो किस तरह देखूँ
नींद  से  रोज़  वो  जगाता  है

जिस ने मेरा मकाँ जलाया था
आज वो  अश्क़ भी बहाता है

उस की रहमत पे  है नज़र वर्ना
साथ मुश्किल में कौन आता है

काटिए मत  हरा  शजर   ऐसे
धूप  में सब के  काम आता है

हादसे   ख़ुद  नज़र बचाते हैं
मौत से आँख जो मिलाता है

अपने बाज़ू पे रख यक़ीँ हिमकर
जीस्त  का  बोझ  जो  उठाता है

जीस्त : ज़िंदगी

© हिमकर श्याम


(चित्र गूगल से साभार)



 

Tuesday 10 October 2017

बात दिल की हमेशा सुना कीजिए


सामने   आप   मेरे   रहा   कीजिए
मुझको मुझसे न ऐसे जुदा कीजिए

है मुहब्बत अगर तो कहा कीजिए
बात दिल की हमेशा सुना कीजिए


क्या ख़ता है मेरी आप क्यूँ हैं ख़फ़ा
गर गिला हो कोई तो कहा कीजिए

कब बदल जाए नीयत किसी की यहाँ
हर किसी से न  हँस के मिला कीजिए

मैंने अहसास दिल का बयाँ कर दिया
यूँ  न  हैरत से मुझको  तका कीजिए
 



© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)