Wednesday 29 October 2014

छठ अनुपम त्यौहार


मान विगत को कम नहीं, आगत का सत्कार।
चार दिनों तक व्रत चले, छठ अनुपम त्यौहार।।

आदिदेव के अर्घ्य से, मिटते हैं दुःख क्लेश।
रिद्धि-सिद्धि, सुख-सम्पदा, यश का हो उन्मेष।। 

करें सूर्योपासना, रखें शुद्ध परिवेश। 
समता औ' सद्भाव का, याद रखें संदेश।।

[छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ]

© हिमकर श्याम  

(चित्र गूगल से साभार)



Thursday 23 October 2014

निष्ठुर तम हम दूर भगाएँ

मानव-मानव का भेद मिटाएँ
      दिल से दिल के दीप जलाएँ

आँसू की यह लड़ियाँ टूटे
खुशियों की फुलझड़ियाँ छूटे 
शोषण, पीड़ा, शोक भुलाएँ
      दिल से दिल के दीप जलाएँ

कितने दीप जल नहीं पाते
कितने दीप बुझ बुझ जाते
दीपक राग मिलकर गाएँ
      दिल से दिल के दीप जलाएँ

बाहर बाहर उजियारा है 
भीतर गहरा अँधियारा है 
अंतर्मन में ज्योति जगाएँ
      दिल से दिल के दीप जलाएँ

मंगलघट कण कण में छलके
कोई उर ना सुख को तरसे 
हर धड़कन की प्यास बुझाएँ
      दिल से दिल के दीप जलाएँ

आलोकित हो सबका जीवन
बरसे वैभव आँगन आँगन 
निष्ठुर तम हम दूर भगाएँ 
दिल से दिल के दीप जलाएँ

रोशन धरती, रोशन नभ हो
शुभ ही शुभ हो, अब ना अशुभ हो
कुछ ऐसी हो दीपशिखाएँ
      दिल से दिल के दीप जलाएँ


(चित्र गूगल से साभार)

[शुभ्र ज्योत्सना का यह पावन पर्व-आपके और आपके परिजनों के लिये सुख, समृद्धि, शांति, आरोग्य एवं धन-वैभव दायक हो इसी कामना के साथ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!]       

[हिंदी तिथि के अनुसार आज इस ब्लॉग के एक वर्ष पूरे हो गए हैं. गत वर्ष दीपावली के दिन  ब्लॉग पर लेखन आरम्भ किया था. समस्त ब्लॉगर मित्रों, पाठकों, शुभचिन्तकों, प्रशंसकों, आलोचकों का हार्दिक धन्यवाद... अपना स्नेह ऐसे ही बनाये रखें…]

© हिमकर श्याम


Tuesday 21 October 2014

माटी का दीपक बने, दीप पर्व की शान


चाक घुमा कर हाथ से, गढ़े रूप आकार।
समय चक्र ऐसा घुमा, हुआ बहुत लाचार।।
चीनी झालर से हुआ, चौपट कारोबार।
मिट्टी के दीये लिए, बैठा रहा कुम्हार।।
माटी को मत भूल तू, माटी के इंसान।
माटी का दीपक बने, दीप पर्व की शान।।

सज धज कर तैयार है, धनतेरस बाजार
महँगाई को भूल कर, उमड़े खरीददार।
सुख, समृद्धि, सेहत मिले, बढ़े खूब व्यापार।
घर, आँगन रौशन रहे, दूर रहे अँधियार।।
कोई मालामाल है, कोई है कंगाल।
दरिद्रता का नाश हो, मिटे भेद विकराल।।

चकाचौंध में खो गयी, घनी अमावस रात।
दीप तले छुप कर करे, अँधियारा आघात।।
दीपों का त्यौहार यह, लाए शुभ सन्देश।
कटे तिमिर का जाल अब, जगमग हो परिवेश।। 
ज्योति पर्व के दिन मिले, कुछ ऐसा वरदान।
ख़ुशियाँ बरसे हर तरफ़, सबका हो कल्याण।।

© हिमकर श्याम 


(चित्र गूगल से साभार)
















Saturday 11 October 2014

कोई जादू लगे है ख़यालात भी

खूब होती शरारत मेरे साथ भी
सब्र को अब मिले कोई सौगात भी

रंजिशे और नफरत भुला कर सभी
हो कभी दिल से दिल की मुलाक़ात भी

है बला की कशिश और लज़्ज़त जुदा
कोई जादू लगे है ख़यालात भी

फ़ासले अब मिटें, बंदिशें सब हटें
प्यार की छांव में बीते दिन-रात भी

है लबों पे दुआ गर सुनो तुम सदा
हो अयाँ आंखों से दिल के जज़्बात भी

चाहतों से महकता रहे सहने दिल
हम पे रहमत करे अब ये बरसात भी

दूर रख इन ग़मों को चलो कुछ हँसे
वक़्त के साथ बदलेंगे हालात भी

अयाँ: जाहिर, सहन: आँगन

© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)