Thursday, 5 June 2014

पर्यावरण की संरक्षा, हो सबका संकल्प






वायु, जल और यह धरा, प्रदूषण से ग्रस्त 
जीना दूभर हो गया,  हर प्राणी है त्रस्त।।

नष्ट हो रही संपदा, दोहन है भरपूर
विलासिता की चाह ने, किया प्रकृति से दूर।।  

जहर उगलती मोटरें, कोलाहल चहूँओर                                       
हरपल पीछा कर रहे, हल्ला गुल्ला शोर।।

आँगन की तुलसी कहाँ,दिखे नहीं अब नीम                                              
जामुन-पीपल कट गए, ढूँढे कहाँ हकीम।।

पक्षी,बादल गुम हुए, सूना है आकाश                
आबोहवा बदल गयी, रुकता नहीं विनाश।।         

शहरों के विस्तार में, खोये पोखर ताल           
हर दिन पानी के लिए, होता खूब बवाल।।

नदियाँ जीवनदायिनी, रखिए इनका मान                                             
कूड़ा-कचड़ा डाल कर,मत करिए अपमान।।                                  

ये प्राकृतिक आपदाएँ, करतीं हमें सचेत   
मौसम का बदलाव भी, देता अशुभ संकेत।।

कुदरत तो अनमोल है, इसका नही विकल्प                                    
पर्यावरण की संरक्षा, सबका हो संकल्प।।



 





© हिमकर श्याम 
(चित्र गूगल से साभार)




16 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि विश्व पर्यावरण दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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    1. हर्षवर्धन जी, ब्लॉग बुलेटिन में मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार !!

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  2. शहरों के विस्तार में, खोये पोखर ताल।
    हर दिन पानी के लिए, होता खूब बवाल।।

    नदियाँ जीवनदायिनी, रखिए इनका मान।
    कूड़ा-कचड़ा डाल कर,मत करिए अपमान।।


    बेहतरीन चिंतन आदरणीय

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    1. प्रतिक्रिया और सराहना के लिए ह्रदय से आभार...

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  3. नष्ट हो रही संपदा, दोहन है भरपूर।
    विलासिता की चाह ने, किया प्रकृति से दूर।।

    पर्यावरण को हो रहे नुकसान का यह प्रमुख कारण है.
    इस के दुष्प्रभाव का आपने बखूबी बयान भी कर दिया है ,आशा है लोग समय रहते चेतेंगे ताकि आने वाली पीढ़ियाँ प्रभावित न हों.

    सामायिक और बहुत ही सार्थक रचना .

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    1. आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया का कोटिशः आभार...

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  4. अफ़सोस कि उपभोक्तावाद की अंधी दौड़ में इंसान अपनी जड़ो से ही कटता जा रहा है...

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    1. प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार

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  5. जहर उगलती मोटरें, कोलाहल चहूँओर।
    हरपल पीछा कर रहे, हल्ला गुल्ला शोर।।
    आज तो सब जगह यही हाल है ... हर दोहे में प्राकृति की त्रासदी को उकेरा है ... मनुष्य ही जिम्मेवार है इन सब के लिए ... सार्थक प्रस्तुति ...

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    1. प्रतिक्रिया और सराहना के लिए ह्रदय से आभार...

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  6. बहुत सुन्दर पर्यावरण सन्देश
    पर्यावरण को शुद्ध रखना हम सभी का फ़र्ज़ है

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    1. प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार

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  7. बहुत सुन्दर और सार्थक सन्देश...

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    1. प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार

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  8. जहर उगलती मोटरें, कोलाहल चहूँओर।
    हरपल पीछा कर रहे, हल्ला गुल्ला शोर।।

    ........बहुत सुन्दर पर्यावरण सन्देश !!

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  9. प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार

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