मुख़्तसर सी ज़िन्दगी तो हसरतों में ढल गयी
कुछ
उम्मीदों पर कटी, कुछ आंसुओं पे पल गयी
ले गयी
किस्मत जिधर हम चल दिए उठकर उधर
जब यकीं
हद से बढ़ा, ये चाल हमसे चल गयी
ख़्वाहिशों
की गठरियां सर पे लिए फिरते रहे
वक़्त
की ठोकर लगी जब आह दिल की खल गयी
किस
कदर मातम मचा था चाहतों की क़ब्र पर
पर
ग़मे दुनिया को जिस सांचों में ढाला ढ़ल गयी
हम सुलगती
रेत पे भटका किये हैं उम्र भर
इन सुराबों
से पड़ा नाता, घटाएं छल गयी
आते-आते
रह गयी लब पे हमारे फिर हंसी
धड़कनों
की नग़मग़ी पे मेरी जान संभल गयी
सब
ख़राशें मिट गयीं दिल पर लगी थीं जो कभी
आप आये
तो शमा महफिल में जैसे जल गयी
आपने तो ख़ुश्क ही कर दी थी उल्फ़त की नदी
डूब कर मुझ में जो उबरी, होके ये जल-थल गयी
क्या
मिला ‘हिमकर’दहर
में इक मुसीबत के सिवा
हाथ
ख़ुशियों के उठे जब भी महूरत टल गयी
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
आते-आते रह गयी लब पे हमारे फिर हंसी
ReplyDeleteधड़कनों की नग़मग़ी पे मेरी जान संभल गयी
very nice .
शेर पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया....
Deleteहम सुलगती रेत पे भटका किये हैं उम्र भर
ReplyDeleteइन सुराबों से पड़ा नाता, घटाएं छल गयी
आते-आते रह गयी लब पे हमारे फिर हंसी
धड़कनों की नग़मग़ी पे मेरी जान संभल गयी
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ...वक्त बहुत कुछ करवाता है
भ्रमर ५
अशआर पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया....
Deleteबहुत ही बेहतरीन गजल....
ReplyDelete:-)
आपका तहेदिल से शुक्रिया रीना जी...
Deleteवाह! बहुत बढ़िया..
ReplyDeleteआपका तहेदिल से शुक्रिया...
Deleteभईया लग रहा है की तुमारे गजल में शब्द तुमारे है और भावना मेरी है !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ .सच कहा जिंदगी किस्मत की मोहताज है .
शुक्रिया अभिषेक...
Deleteऐसी ही है ज़िंदगी , कुछ पूरी सी कुछ अधूरी सी.....
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ लिखी हैं
आपका तहेदिल से शुक्रिया...
Deleteवाह..... बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteआपको ग़ज़ल पसंद आयी. बहुत-बहुत शुक्रिया...
DeleteAapne mazaar par zindagi ke deep jalayen hain! Bahut khoob.
ReplyDeleteहौसला अफजाई के लिए शुक्रिया...
Deleteहम सुलगती रेत पे भटका किये हैं उम्र भर
ReplyDeleteइन सुराबों से पड़ा नाता, घटाएं छल गयी
वाह! वाह! बहुत उम्दा.यह शेर बहुत गहरा लगा मानो अधूरे सफ़र की पूरी कहानी कह रहा हो.
आपने तो ख़ुश्क ही कर दी थी उल्फ़त की नदी
डूब कर मुझ में जो उबरी, होके ये जल-थल गयी
यह शेर भी बहुत खूबसूरती से अपनी बात कह गया है.
*आपने यह ग़ज़ल भी बहुत अच्छी कही है .बधाई!
बहुत-बहुत शुक्रिया अल्पना जी, ग़ज़ल को पसंद करने के लिए !
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ReplyDeleteले गयी किस्मत जिधर हम चल दिए उठकर उधर
जब यकीं हद से बढ़ा, ये चाल हमसे चल गयी
ख़्वाहिशों की गठरियां सर पे लिए फिरते रहे
वक़्त की ठोकर लगी जब आह दिल की खल गयी
हम सुलगती रेत पे भटका किये हैं उम्र भर
इन सुराबों से पड़ा नाता, घटाएं छल गयी
आपने तो ख़ुश्क ही कर दी थी उल्फ़त की नदी
डूब कर मुझ में जो उबरी, होके ये जल-थल गयी
बेहतरीन ग़ज़ल आदरणीय
आपको ग़ज़ल पसंद आयी जानकर अच्छा लगा ... अशआर पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया....
Delete"ख़्वाहिशों की गठरियां सर पे लिए फिरते रहे
ReplyDeleteवक़्त की ठोकर लगी जब आह दिल की खल गयी"बहुत बेहतरीन ग़ज़ल
शुक्रिया पुष्कर...
Deleteलाजवाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@बधाई/उफ़ ! ये समाचार चैनल
नयी पोस्ट@बड़ी दूर से आये हैं
शुक्रिया आपका...
Deleteसब ख़राशें मिट गयीं दिल पर लगी थीं जो कभी
ReplyDeleteआप आये तो शमा महफिल में जैसे जल गयी ..
बहुत खूब ... किसि के आने पे क्या क्या हो जाता है ... प्रेम समर्पित लाजवाब शेर इस ग़ज़ल का ....
आपको ग़ज़ल पसंद आयी. बहुत-बहुत शुक्रिया...
Deleteआपकी प्रतिक्रिया पाकर खुशी हुई...स्वागत है आपका ...
ReplyDeleteआते-आते रह गयी लब पे हमारे फिर हंसी
ReplyDeleteधड़कनों की नग़मग़ी पे मेरी जान संभल गयी
सरल सहज शब्दों में गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और सुन्दर पंक्तियाँ ..
शेर पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया....
Delete@हाथ ख़ुशियों के उठे जब भी महूरत टल गयी
ReplyDeleteबहुत खूब ...
शुक्रगुज़ार हूँ
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