Saturday, 24 May 2014

सुलगती रेत पे



मुख़्तसर सी ज़िन्दगी तो हसरतों में ढल गयी
कुछ उम्मीदों पर कटी, कुछ आंसुओं पे पल गयी  

ले गयी किस्मत जिधर हम चल दिए उठकर उधर
जब यकीं हद से बढ़ा, ये चाल हमसे चल गयी 

ख़्वाहिशों की गठरियां सर पे लिए फिरते रहे
वक़्त की ठोकर लगी जब आह दिल की खल गयी 

किस कदर मातम मचा था चाहतों की क़ब्र पर
पर ग़मे दुनिया को जिस सांचों में ढाला ढ़ल गयी

हम सुलगती रेत पे भटका किये हैं उम्र भर
इन सुराबों से पड़ा नाता, घटाएं छल गयी

आते-आते रह गयी लब पे हमारे फिर हंसी
धड़कनों की नग़मग़ी पे मेरी जान संभल गयी

सब ख़राशें मिट गयीं दिल पर लगी थीं जो कभी
आप आये तो शमा महफिल में जैसे जल गयी

आपने तो ख़ुश्क ही कर दी थी उल्फ़त की नदी
डूब कर मुझ में जो उबरी, होके ये जल-थल गयी

क्या मिला हिमकरदहर में इक मुसीबत के सिवा
हाथ ख़ुशियों के उठे जब भी महूरत टल गयी

© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)

31 comments:

  1. आते-आते रह गयी लब पे हमारे फिर हंसी
    धड़कनों की नग़मग़ी पे मेरी जान संभल गयी
    very nice .

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    1. शेर पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया....

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  2. हम सुलगती रेत पे भटका किये हैं उम्र भर
    इन सुराबों से पड़ा नाता, घटाएं छल गयी

    आते-आते रह गयी लब पे हमारे फिर हंसी
    धड़कनों की नग़मग़ी पे मेरी जान संभल गयी
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ...वक्त बहुत कुछ करवाता है
    भ्रमर ५

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    1. अशआर पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया....

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  3. बहुत ही बेहतरीन गजल....
    :-)

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    1. आपका तहेदिल से शुक्रिया रीना जी...

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  4. वाह! बहुत बढ़िया..

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    1. आपका तहेदिल से शुक्रिया...    

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  5. भईया लग रहा है की तुमारे गजल में शब्द तुमारे है और भावना मेरी है !
    बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ .सच कहा जिंदगी किस्मत की मोहताज है .

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    1. शुक्रिया अभिषेक...

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  6. ऐसी ही है ज़िंदगी , कुछ पूरी सी कुछ अधूरी सी.....

    बेहतरीन पंक्तियाँ लिखी हैं

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    1. आपका तहेदिल से शुक्रिया...    

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  7. वाह..... बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...

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    1. आपको ग़ज़ल पसंद आयी. बहुत-बहुत शुक्रिया...

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  8. Aapne mazaar par zindagi ke deep jalayen hain! Bahut khoob.

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    1. हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया...

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  9. हम सुलगती रेत पे भटका किये हैं उम्र भर
    इन सुराबों से पड़ा नाता, घटाएं छल गयी

    वाह! वाह! बहुत उम्दा.यह शेर बहुत गहरा लगा मानो अधूरे सफ़र की पूरी कहानी कह रहा हो.
    आपने तो ख़ुश्क ही कर दी थी उल्फ़त की नदी
    डूब कर मुझ में जो उबरी, होके ये जल-थल गयी

    यह शेर भी बहुत खूबसूरती से अपनी बात कह गया है.

    *आपने यह ग़ज़ल भी बहुत अच्छी कही है .बधाई!

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया अल्पना जी, ग़ज़ल को पसंद करने के लिए !

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  10. ले गयी किस्मत जिधर हम चल दिए उठकर उधर
    जब यकीं हद से बढ़ा, ये चाल हमसे चल गयी

    ख़्वाहिशों की गठरियां सर पे लिए फिरते रहे
    वक़्त की ठोकर लगी जब आह दिल की खल गयी
    हम सुलगती रेत पे भटका किये हैं उम्र भर
    इन सुराबों से पड़ा नाता, घटाएं छल गयी
    आपने तो ख़ुश्क ही कर दी थी उल्फ़त की नदी
    डूब कर मुझ में जो उबरी, होके ये जल-थल गयी


    बेहतरीन ग़ज़ल आदरणीय

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    1. आपको ग़ज़ल पसंद आयी जानकर अच्छा लगा ... अशआर पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया....

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  11. "ख़्वाहिशों की गठरियां सर पे लिए फिरते रहे
    वक़्त की ठोकर लगी जब आह दिल की खल गयी"बहुत बेहतरीन ग़ज़ल

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    1. शुक्रिया पुष्कर...

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  12. सब ख़राशें मिट गयीं दिल पर लगी थीं जो कभी
    आप आये तो शमा महफिल में जैसे जल गयी ..

    बहुत खूब ... किसि के आने पे क्या क्या हो जाता है ... प्रेम समर्पित लाजवाब शेर इस ग़ज़ल का ....

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    1. आपको ग़ज़ल पसंद आयी. बहुत-बहुत शुक्रिया...    

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  13. आपकी प्रतिक्रिया पाकर खुशी हुई...स्वागत है आपका ...

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  14. आते-आते रह गयी लब पे हमारे फिर हंसी
    धड़कनों की नग़मग़ी पे मेरी जान संभल गयी
    सरल सहज शब्दों में गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और सुन्दर पंक्तियाँ ..

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    1. शेर पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया....

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  15. @हाथ ख़ुशियों के उठे जब भी महूरत टल गयी

    बहुत खूब ...

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