दर्ज़ हुई इतिहास में, फिर काली तारीख़।
मानवता आहत हुई, सुन बच्चों की चीख़।।
कब्रगाह को देख कर, सिसके माँ का प्यार।
सारी दुनिया कह रही, बार-बार धिक्कार।।
मंसूबे जाहिर हुए, करतूतें बेपर्द।
कैसा ये जेहाद है, कायर दहशतगर्द।।
होता है क्यूँकर भला, बर्बर कत्लेआम।
हिंसा औ' आतंक पर, अब तो लगे लगाम।।
दुःख सबका है एक सा, क्या मज़हब, क्या देश।
पर पीड़ा जो बाँट ले, वही संत दरवेश।।
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
आतंकियों का कोई मजहब नहीं होता.
ReplyDeleteदुःख सबका है एक सा, क्या मज़हब, क्या देश।
पर पीड़ा जो बाँट ले, वही संत दरवेश।।
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समसामयिक व संवेदनशील दोहे ...बहुत बढ़िया आदरणीय
ReplyDeleteहोता है क्यूँकर भला, बर्बर कत्लेआम।
ReplyDeleteहिंसा औ' आतंक पर, अब तो लगे लगाम ..
मानवता के हत्यारे हैं ये लोग ... संवेदनशीलता मर गयी है ...
बहुत ही लाजवाब दोहे हैं ... सत्य बयान करते हुए ...
अंतस की पीड़ा को अभिव्यक्त करते बहुत प्रभावी और सार्थक दोहे....
ReplyDeleteBehad sharmnaak...ghinouna krity...ab b paak na sudhare to naapaakh....maaf kijiye Comment nhi ho paya to reply me diya
Deleteमालिक-ए-क़ाबा का जो इनमे डर होता
ReplyDeleteख़ून-ए-इंसानियत न इनके सर होता
क़सम ख़ुदा की यह ख़ुदा वाले नहीं है
ख़ौफ़-ए-ख़ुदा का कुछ तो असर होता
वाकई इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना है ।
ReplyDeleteमार्मिक दोहे
पर पीडा जो बांट ले वही संत दरवेश। आज तो मन यही हो रहा है, हाय वे मासूम बच्चे और उनके सर्वहारा माता पिता!!!!!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteदुःख सबका है एक सा, क्या मज़हब, क्या देश।
ReplyDeleteपर पीड़ा जो बाँट ले, वही संत दरवेश।।
सत्य है अगर इस बात को समझ लें तो स्थिति बदल सकती है ,मगर ऐसा कहाँ होता है यह तो बदले की शृंखला बन रही है ..आप ने अपनी इस रचना में बहुत ही मर्म स्पर्शी अभिव्यक्ति से सब के मन की कह दी है..हमारा स्वर भी शामिल हो इस दिवस को काला करने वालों के लिए 'धिक्कार है ,धिक्कार है'.
सत्य बयान करते हुए इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना है ।
ReplyDeleteआप सबों का आभार!
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