सफ़र का लुत्फ़ मिले ज़िंदगी
की राहों में
चलूँ जो साथ तेरे इश्क़ की
पनाहों में
महक उठी हैं फिजाएँ किसी के
आने से
बहार बन के समाया है कौन
चाहों में
असर कुछ ऐसा हुआ उनके शोख जलवों का
उन्हीं का अक्स बसा जाता है निगाहों में
उन्हीं का अक्स बसा जाता है निगाहों में
गिला रहा न कोई अब हयात से
हमको
सिमट के आ गईं ख़ुशियाँ तमाम
बाँहों में
ख़बर थी अपनी, न थी फ़िक्र
कोई दुनिया की
सुकून इतना मिला हमको
जल्वागाहों में
किसी ने याद किया आज मुझको
शिद्दत से
खड़ीं हैं साथ मेरे हिचकियाँ गवाहों में
खड़ीं हैं साथ मेरे हिचकियाँ गवाहों में
घटा जो आज तेरी सांसों को छुके
उट्ठी
वो बरसे आके मेरे दिल की प्यासी राहों में
वो बरसे आके मेरे दिल की प्यासी राहों में
शुमार इश्क़ न हो खानुमा
ख़राबों में
करे न ज़िक्र कोई प्यार का
गुनाहों में
कभी तो हाल सुनो पास आके
'हिमकर' के
बदल न जाए सदा उसकी सर्द
आहों में
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
सुन्दर … प्रेमपगे भाव
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ हैं
शुक्रिया आपका
Deleteकिसी ने याद किया आज मुझको शिद्दत से
ReplyDeleteखड़ीं हैं साथ मेरे हिचकियाँ गवाहों में
बहुत सुंदर गजल.
बहुत-बहुत शुक्रिया
Deleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (16-02-2015) को "बम भोले के गूँजे नाद" (चर्चा अंक-1891) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चामंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद!
Deleteबहुत सुन्दर प्रेममय गीत।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
Deleteबहुत ही सुंदर पंक्तियां।
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
DeleteBehad khoobsurat gazal.
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
Deleteबहुत ही सुन्दर.....
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
Deleteदेर से पहुँचने के लिए क्षमा चाहती हूँ ,बड़ी भीनी भीनी सी रूमानियत का अहसास लिए है यह ग़ज़ल ...और क्या खूब कहा है आप ने यह शेर के ...किसी ने याद किया आज मुझको शिद्दत से
ReplyDeleteखड़ीं हैं साथ मेरे हिचकियाँ गवाहों में'
..बहुत खूब! कभी अपनी आवाज़ में इस ग़ज़ल को रिकॉर्ड करके सुनाईये.
अल्पना जी, ग़ज़ल आप तक पहुंची, मुझे बहुत ख़ुशी हुई . बहुत-बहुत शुक्रिया आपका...बेसुरा हूं. गाना नहीं आता, बस पढ़ सकता हूँ. इसे आपकी आवाज़ मिल जाए क्या कहने. आपकी आवाज़ में सुनना निश्चय ही सुखद होगा.
Deleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteगोस्वामी तुलसीदास
शुक्रिया आपका
Deleteमहक उठी हैं फिजाएँ किसी के आने से
ReplyDeleteबहार बन के समाया है कौन चाहों में ...
प्रेम रस में पगी ... मीठा सा एहसास लिए है हर शेर जो दिल के अन्दर तक धंस जाता है ... सार्थक किया है १४ फ़रवरी के दिवस को आपने ...
बहुत-बहुत शुक्रिया आपका
Deleteहिमकर जी, बेहद भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई....यह रचना भी बहुत बढ़िया गाने योग्य है | मैंने एक बार "उमड़-घुमड़" रचना के बारे में भी कमेन्ट करते हुए यह कहा था | उसकी धुन पर काम किया है और अगली बरसात में उसे आप तक और श्रोताओं तक पहुँचाना चाहता हूँ.....
ReplyDelete@जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
बहुत-बहुत शुक्रिया आपका। यह जानकर ख़ुशी हुई कि आपने धुन तैयार कर ली है, आभार। आपकी उस पोस्ट का इंतजार रहेगा।
Deleteकभी तो हाल सुनो पास आके 'हिमकर' के
ReplyDeleteबदल न जाए सदा उसकी सर्द आहों में
वाह ! बहुत बेहतरीन ! हर शेर मोती सा बेशकीमती ! हर अहसास जज़्बात की रवानी से धड़कता हुआ ! बहुत खूब !........हिमकर जी
बहुत-बहुत शुक्रिया
Deleteख़बर थी अपनी, न थी फ़िक्र कोई दुनिया की
ReplyDeleteसुकून इतना मिला हमको जल्वागाहों में
.....बहुत खूब
बहुत-बहुत शुक्रिया
DeleteExcellent !
ReplyDeleteThanks
Deletewahhhh.Bhut badhiya line
ReplyDeleteebook publisher india
शुमार इश्क़ न हो खानुमा ख़राबों में
ReplyDeleteकरे न ज़िक्र कोई प्यार का गुनाहों में
कहते है ग़ज़ल होती हैं तो होती हैं नहीं होती तो नहीं होती और ये ग़ज़ल हो गईं है। सुन्दर
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स्वागत है आपका...हार्दिक आभार!!
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Thanks for visiting
Deleteगिला रहा न कोई अब हयात से हमको
ReplyDeleteसिमट के आ गईं ख़ुशियाँ तमाम बाँहों में
बहुत सुंदर हिमकर जी। वैसे तो हर एक शेरअपने आप में मुकम्मल है
पर मुझे यह बहुत पसंद आया।
ग़ज़ल आप तक पहुंची मुझे बेहद ख़ुशी हुई.. बहुत बहुत शुक्रिया आपका…
Deleteसुन्दर ग़ज़ल बहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने.
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया
Deletebeautiful gazal...very touchy..
ReplyDeleteThanks
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