(विश्व गौरैया दिवस पर)
घर आँगन सूना लगे, ख़ाली रोशनदान।
रोज़ सवेरे झुण्ड में, आते थे मेहमान।।
प्यारी चिड़ियाँ गुम हुई, लेकर मीठे गान।
उजड़ गए सब घोंसले, संकट में है जान।।
चहक-चहक मन मोहती, चंचल शोख़ मिज़ाज।
बस यादों में शेष है, चूं-चूं की आवाज़।।
बाग़-बगीचों की जगह, कंक्रीट के मकान।
गोरैया रूठी हुई, अपराधी इनसान।।
कहाँ गयी वह सहचरी, बच्चों की मुस्कान।
दाना-पानी दे उसे, करें नीड़ निर्माण।।
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
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सुन्दर रचना !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है अगर पसंद आये तो कृपया कर अपने सुझाव दे
स्वागत व आभार
Deleteअंतर्राष्ट्रीय गोरैया दिवस पर बहुत सुंदर रचना.अति विकास की भेंट चढ़ गई है,गोरैया जैसी छोटी पक्षियों का विलुप्त होना.
ReplyDeleteसच कहा...सादर आभार
Deleteभारतीय नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच "करूँ तेरा आह्वान " (चर्चा - 1925) पर भी होगी!
बहुत -बहुत धन्यवाद, मयंक जी . चर्चा में मेरी प्रविष्टि को शामिल किया,आभारी हूँ .
Deleteकहाँ गयी वह सहचरी..बच्चों की मुस्कान ..सच में जिस तरह शहरों से गौरैया गायब हो गयी हैं वह चिंता का विषय है.बहुत ही अच्छी कविता लिखी है आपने ..............साथ दिया यह चित्र भी जीवंत लग रहा है .
ReplyDeleteयहाँ एमिरात में जहाँ मैं रहती हूँ वहाँ आसपास पेड़ हैं घर के सामने ही लगे हरे भरे पेड़ पर खूब चिड़ियाँ आती हैं ..देखकर बहुत सुकून मिलता है.
घर को अपनी चीं..चीं से चहकाने वाली गौरैया हाल तक यहाँ दिखाई देती थी, अब यह बिल्कुल दिखाई नहीं देती...आभार
Deleteअति सुन्दर.
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteयथार्थ बयान किया है आपने
ReplyDeleteआभार
Deleteकहाँ गयी वह सहचरी, बच्चों की मुस्कान।
ReplyDeleteदाना-पानी दे उसे, करें नीड़ निर्माण।।
आज सच में जरूरत है पुनः उस मुकान को वापस लाने की ... जिस तेज़ी से शहरों से गौरैया की संख्या घाट रही है वो चिंता जनक है ... अल्पना जी ने सच कहा है ... अमीरात में जहां वातावरण इन पंछियों के पूरक बन रहा है अपने देश में पता नहीं क्या हो रहा है ...
हाँ अब स्थिति बदल गई है। गौरैया की संख्या काफी कम हो गयी है...कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई नहीं देती।...आभार
Deleteबाग़-बगीचों की जगह, कंक्रीट के मकान।
ReplyDeleteगोरैया रूठी हुई, अपराधी इनसान।।
सच कहां आपने यह मानव का की अपराध हैं..........
http://savanxxx.blogspot.in
हार्दिक आभार
Deleteसार्थक रचना
ReplyDeleteसच में आँगन की चूँ चूँ खो गयी है ।
हार्दिक आभार
Deleteसुन्दर सार्थक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteघर आँगन सूना लगे, ख़ाली रोशनदान।
ReplyDeleteरोज़ सवेरे झुण्ड में, आते थे मेहमान।।
वाह गज़ब .....बहुत सुन्दर
हार्दिक आभार
Deleteमुझे ठीक से जानकारी नहीं है कि मोबाइल टावर के विकिरण जिम्मेदार हैं इसके लिए. लेकिन छत के घरों से निश्चय ने इनके सहज आवास उजाड़ दिए हैं. आपकी रचना इस व्यथा को सही आवाज़ दे रही है.
ReplyDeleteआपने सही कहा , मोबाइल टावर से निकलने वाली किरणें भी गौरैया की जान की दुश्मन बनी हुई हैं. शहरों में वातावरण अब गौरैया के लिए अनुकूल नहीं रहा. गौरैया के रहने के लिए जगह नहीं बची है. हर शहर कंक्रीट के आशियानों में बदल चुका है...आभार
Deleteअति सुन्दर, सार्थक रचना !
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteबहुत सुन्दर कविता !
ReplyDeleteसादर आभार, आदरणीया
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