(विश्व गौरैया दिवस पर)
घर आँगन सूना लगे, ख़ाली रोशनदान।
रोज़ सवेरे झुण्ड में, आते थे मेहमान।।
प्यारी चिड़ियाँ गुम हुई, लेकर मीठे गान।
उजड़ गए सब घोंसले, संकट में है जान।।
चहक-चहक मन मोहती, चंचल शोख़ मिज़ाज।
बस यादों में शेष है, चूं-चूं की आवाज़।।
बाग़-बगीचों की जगह, कंक्रीट के मकान।
गोरैया रूठी हुई, अपराधी इनसान।।
कहाँ गयी वह सहचरी, बच्चों की मुस्कान।
दाना-पानी दे उसे, करें नीड़ निर्माण।।
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
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