उतर चली शिव शीश से, गोमुख सुरसरि द्वार
जन कल्याणी जयति जय, वंदन बारम्बार
भू पर उतरी देवसरि, करती सबका त्राण
सगर सुतों की तारिणी, जन मानस की प्राण
साथ भगीरथ के चली, लिए वेगमय धार
जन कल्याणी जयति जय, वंदन बारम्बार
लहरों में आहंग ले, अमिय कलश ले संग
कल-कल बहती बिन रुके, पाप नाशिनी गंग
अतिपावन सुखदायिनी, अविरल अमृत धार
जन कल्याणी जयति जय, वंदन बारम्बार
सप्त सरित में श्रेष्ठ तू, निर्मल तेरा नीर
कितने तीरथ हैं बसे, गंगा तेरे तीर
तेरे चरण पखारती, धन्य भूमि हरिद्वार
जन कल्याणी जयति जय, वंदन बारम्बार
सरस सलिल मंदाकिनी, भारत की पहचान
समृद्धि संस्कृति दायिनी, वसुधा को वरदान
जाति-धर्म सब पाटती, बाँटा करती प्यार
जन कल्याणी जयति जय, वंदन बारम्बार
मोक्षदायिनी आज खुद, व्यथित और लाचार
भगीरथी मैली हुई, मंद हुई जलधार
जग की पालनहार का, कौन करे उद्धार
जन कल्याणी जयति जय, वंदन बारम्बार
गंगा जीवनदायिनी, रखिए इसका मान
कूड़ा-कचरा डालकर, मत करिए अपमान
सिसक रही है देखिए, सुनिए करुण पुकार
जन कल्याणी जयति जय, वंदन बारम्बार
सुख-दुख की जो सहचरी, भूल गया इन्सान
सुधामयी अभिशप्त है, करती विष का पान
रहे प्रदूषण मुक्त माँ, लौटे पावन धार
जन कल्याणी जयति जय, वंदन बारम्बार
© हिमकर श्याम
(तस्वीर रोहित कृष्ण की)
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चर्चामंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद
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ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
अवश्य, स्वागत व आभार
Deleteमोक्षदायिनी आज खुद, व्यथिथ और लाचार
ReplyDeleteभगीरथी मैली हुई, मंद हुई जलधार
जग की पालनहार का, कौन करे उद्धार
जयति जय जन कल्याणी, वंदन बारम्बार
समय के साथ चलती और शिक्षा प्रद सोचने पर मजबूर करती
आभार
हार्दिक धन्यवाद
Deleteसुन्दर सीख देती , अच्छे शब्द सृजन के साथ माँ गंगे को पवित्र रखने का आह्वान करती अच्छी रचना
ReplyDeleteभ्रमर ५
हार्दिक आभार
Deleteश्याम जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना जिसमे मधुर लय ताल भी है !
हमें हमारी प्राकृतिक धरोहरों का सम्मान करना नहीं आता क्या करे परिणाम
हमारे सामने खड़े है ! एक बारीक शंका है "भू पर उतरी देवसरि, करती सबका त्राण"
इस पंक्ति में करती सबका त्राण है या हरती सबका त्राण है ? समझी नहीं !
आ. सुमन जी, नमस्कार! आपकी सुन्दर और प्रेरक प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ. लिखते समय 'करती' और 'हरती' को लेकर मुझे भी थोड़ी दुविधा हो रही थी. मानक हिन्दी कोश में त्राण का अर्थ सहायता और किसी को विपत्ति या संकट से छुटकारा दिलाने या सुरक्षित रखने की क्रिया या भाव है. संक्षिप्त हिंदी शब्द सागर में इसका अर्थ रक्षा/बचाव/ हिफ़ाजत लिखा है. अंततः 'करती सबका त्राण' लिखना ठीक समझा. आगे भी अपने बहुमूल्य विचारों और सुझावों से अवगत कराते रहिएगा, धन्यवाद.
Deletesundar
ReplyDeleteआभार
Deleteलाजवाब रचना। अच्छा लगा पढ़कर
ReplyDeletehttp://chlachitra.blogspot.in
http://cricketluverr.blogspot.in
हार्दिक स्वागत, ब्लॉग अनुसरण करने के लिए तहेदिल से धन्यवाद!!
Deleteसप्त सरित में श्रेष्ठ तू, निर्मल तेरा नीर
ReplyDeleteकितने तीरथ हैं बसे, गंगा तेरे तीर
तेरे चरण पखारती, धन्य भूमि हरिद्वार
जयति जय जन कल्याणी, वंदन बारम्बार ..
हिमकर जी ... इस रचना को बारम्बार पढ़ कर भी तृप्ति नहीं हो रही है ... मधुर शब्द संचयन, सरस भाव और प्रवाह जैसे स्वयं माँ गंगे शब्दो में उतर कर बह रही हो ... बहुत समय बाद ऐसी कालजयी रचना पढने का अवसर मिल रहा है ... बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए ...
आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से संबल मिला. प्रोत्साहन के लिए हृदय से आभार.
Deleteतब तो ठीक है शंका दूर हई, आभार :)
ReplyDeleteख़ुशी हुई, सादर,
Deleteसुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसुन्दर भाषा व भाव से सजी प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
हार्दिक स्वागत, ब्लॉग अनुसरण करने के लिए तहेदिल से धन्यवाद!!
Deletesahaz,sundar,saral prastuti....
ReplyDeleteस्वागत व आभार !!
Deleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
आभार
Deleteबहुत ही अध्यात्मिक पोस्ट।
ReplyDeleteआभार
Deleteganga ke pavitrata ko aaj kachara dal kar hum nasht kar rahe hain.. maa ganga ki sunder mahima.. bahut sundar rachana aapne ki hai.
ReplyDeleteशब्दों ओर भावों का लाज़वाब संयोजन..बहुत सुन्दर वंदना...
ReplyDeleteसुन्दर भावों से परिपूर्ण बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteइस आस्था को सादर नमन के साथ
ज्योत्स्ना शर्मा
सराहना तथा प्रोत्साहन के लिए हृदय से धन्यवाद एवं आभार !
ReplyDelete~सादर
बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भाव
हार्दिक बधाई