अहसास न होते तो, सोचा है कि क्या होता
ये अश्क़ नहीं होते, कुछ भी न मज़ा होता
तक़रार भला क्यूँकर, सब लोग यहाँ अपने
साजिश में जो फँस जाते, अंजाम बुरा होता
बेख़ौफ़ परिंदों की, परवाज़ जुदा होती
उड़ने का हुनर हो तो, आकाश झुका होता
अख़लाक़ जरूरी है, छोड़ो न इसे लोगो
तहज़ीब बची हो तो, कुछ भी न बुरा होता
मेहमान परिंदे सब, उड़ जाते अचानक ही
रुकता न यहाँ कोई, हर शख़्स जुदा होता
काबा में न काशी में, ढूंढे न खुदा मिलता
गर गौर से देखो तो, सजदों में छुपा होता
मगरूर नहीं हिमकर, पर उसकी अना बाक़ी
वो सर भी झुका देता, गर दिल भी मिला होता
© हिमकर श्याम
मगरूर नहीं हिमकर, पर उसकी अना बाक़ी
ReplyDeleteवो सर भी झुका देता, गर दिल भी मिला होता
बहुत बढ़िया।
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteवाह ! सुंदर रचना । बहुत बहुत बधाई हिमकर जी...
ReplyDeleteमेहमान परिंदे सब, उड़ जाते अचानक ही
ReplyDeleteरुकता न यहाँ कोई, हर शख़्स जुदा होता
अर्थपूर्ण , बाहर उम्दा पंक्तियाँ
बेख़ौफ़ परिंदों की, परवाज़ जुदा होती
ReplyDeleteउड़ने का हुनर हो तो, आकाश झुका होता
...वाह...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
वाह हिमकर जी! बेहद प्रभावशाली रचना......बहुत बहुत बधाई.....
ReplyDeletebahut sundar rachna...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
सुन्दर व सार्थक रचना...
ReplyDeleteनववर्ष मंगलमय हो।
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बहुत ही सुंदर रचना। नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का हृदय से धन्यवाद एवं आभार !
ReplyDelete~सादर
सार्थक शेर ... सच है एहसास नहीं होते तो इंसान पत्थर ही हो गया होता ...
ReplyDeleteशुक्रिया। एक अरसे बाद आपका कमेंट्स मिला, ख़ुशी हुई।
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