नव संवत्, नव चेतना, नूतन नवल उमंग।
साल पुराना ले गया, हर दुख अपने संग।।
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा, वासन्तिक नवरात।
संवत्सर आया नया, बदलेंगे हालात।।
जीवन में उत्कर्ष हो, जन-जन में हो हर्ष।
शुभ मंगल सबका करे, भारतीय नव वर्ष।।
ढाक-साल सब खिल गए, मन मोहे कचनार।
वन प्रांतर सुरभित हुए, वसुधा ज्यों गुलनार।।
प्रकृति-प्रेम आराधना, सरहुल का त्योहार।
हरी-भरी धरती रहे, सुख-संपन्न घर बार।।
© हिमकर
श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-04-2016) को "नूतन सम्वत्सर आया है" (चर्चा अंक-2307) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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चैत्र नवरात्रों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभारी हूँ
Deleteअच्छी कविता
ReplyDeleteस्वागत व आभार
Deleteबहुत सुन्दर। .
ReplyDeleteआपको भी नव संवत् की हार्दिक शुभकामनाएं!
धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर हिमकर जी ... नव संवत आपके जीवन में नव रस नव उमंग ले कर आए ... बहुत सुंदर दोहे .. आनंद आ गया ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसुन्दर दोहे
ReplyDeleteहार्दिक शुभ कामनाएँ !
सादर आभार
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाएँ
धन्यवाद
Deleteसुंदर शब्दों और भावों के लय पे अठखेली करते आपके साधना से पूरित दोहे
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसाल पुराना ले गया हरदुःख अपने संग । बहुत सुंदर दोहे । नववर्ष की शुभकामनाय ।
ReplyDeleteसराहना और ब्लॉग से जुड़ने के लिए हार्दिक आभार
Deleteबहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति। नववर्ष की शुभकामनाएं।
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