Thursday, 14 July 2016

शाखों से पत्ता झड़ता है



अक्सर ही  ऐसा  होता है
सुकरात यहाँ पे मरता है

बूढ़ा दरख़्त यह कहता है
दिन  जैसे तैसे  कटता है


पाँवों  में  काँटा  चुभता  है
लेकिन चलना तो पड़ता है


मोल नहीं  है सच का  कोई
पर खोटा सिक्का चलता है


सपने सारे  बिखरे जब से
दिल चुपके चुपके रोता है


आया है पतझड़ का मौसम 
शाखों  से  पत्ता   झड़ता  है


कोई  नग़मा फिर छेड़ो  तुम
कुछ सुनने को मन करता है


साँसों का चलना है जीवन
पल भर  का  सब नाता है


हँसने  लगता है रब यारो
जब कोई बच्चा हँसता है


आफ़त सर पे रहती हिमकर
पर हँस  कर दुःख  सहता है 
 


एक शेर यूँ भी 

याद बहुत आता है गब्बर
जब  कोई  बच्चा रोता है


© हिमकर श्याम


[तस्वीर : पुरातत्वविद डॉ हरेंद्र प्रसाद सिन्हा जी की ]

14 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-07-2016) को "आये बदरा छाये बदरा" (चर्चा अंक-2404) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. wah himkar ji kya khoob likha hai.. aur aakhri sher to kya kaha. aapke blog par aakar prasannta hui.. kuch naya mila. bahut khoob.

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  3. सुप्रभात ! चलना जबतक जिन्दगी है

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  4. बहुत खूब ! सुन्दर प्रस्तुति !

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  5. बहुत सुन्दर

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  6. बहुत खूब ... और उस पुछल्ले ने तो मुस्कान ला दी होठों पर ...
    हर शेर जबरदस्त ...

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  7. वाह...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

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  8. पाँवों में काँटा चुभता है
    लेकिन चलना तो पड़ता है

    मोल नहीं है सच का कोई
    पर खोटा सिक्का चलता है

    सच्ची बात।

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  9. बढिया गज़ल।

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  10. बहुत खूब हिमकर जी ।

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  11. मोल नहीं है सच का कोई
    पर खोटा सिक्का चलता है

    सपने सारे बिखरे जब से
    दिल चुपके चुपके रोता है

    आया है पतझड़ का मौसम
    शाखों से पत्ता झड़ता है

    कोई नग़मा फिर छेड़ो तुम
    कुछ सुनने को मन करता है


    बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय

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