हमसफ़र भी नहीं है न है राहबर
चल सको तो चलो साथ मेरे उधर
मेरे हालात से तुम रहे बेख़बर
हाल कितना बुरा है कभी लो ख़बर
साथ कुछ देर मेरे जरा तो ठहर
मान जा बात मेरी ओ जाने ज़िगर
याद तेरी सताती हमें रात भर
जागते जागते हो गयी फिर सहर
दिल पे करते रहे वार पे वार तुम
और चलाते रहे अपनी तीरे नज़र
तुमको जीभर के हमने न देखा कभी
वस्ल की साअतें थीं बड़ी मुख़्तसर
भूल सकता नहीं उनको हिमकर कभी
ज़ख्म दिल के भला कैसे जाएँगे भर
© हिमकर श्याम
[तस्वीर : फोटोग्राफिक क्लब रूपसी के अध्यक्ष श्रद्धेय डॉ सुशील कुमार अंकन जी की]
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ,बधाई आपको हिमकर श्याम जी |
ReplyDeleteबहुत खूब बधाई हिमकर श्याम जी ! जिस रचना को आदरनीय कालीपद "प्रसाद" जी द्वारा पसंद किया गया हो भला हम जैसे तो छोटे भाई हैं |
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ...उनकी यादों में रात sahar तो होनी ही है ... बहुत लाजवाब शेर हैं इस सादा bahar में ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-07-2016) को "मीत बन जाऊँगा" (चर्चा अंक-2392) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह ! लाजवाब।
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल.
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 08/07/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 08/07/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
वाह बहुत बढ़िया ग़ज़ल
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