Thursday, 3 November 2016

ज़िंदगी तुझसे निभाना आ गया

[आज इस 'ब्लॉगके तीन वर्ष पूरे हो गए। इन तीन वर्षों में आप लोगों का जो स्नेह और सहयोग मिलाउसके लिए तहे दिल से शुक्रिया और आभार। यूँही आप सभी का स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहे यही चाह है। इस मौक़े पर एक ग़ज़ल आप सब के लिए सादर,] 



ज़िंदगी तुझसे निभाना आ गया
हौसलों को आज़माना आ गया

रफ्ता-रफ्ता ज़िन्दगी कटती गयी
और ग़म से दिल लगाना आ गया

सहते सहते दर्द की आदत पड़ी
चोट खाकर मुस्कुराना आ गया

तितलियाँ भी बाग़ में आने लगीं
देखिए मौसम सुहाना आ  गया

मुद्दतों  के बाद उनसे हम  मिले
लौट के गुजरा ज़माना आ गया

हो रहे कमज़ोर रिश्ते आजकल
देखिए  कैसा  ज़माना आ गया

हार पर  आँसू  बहाते  कब तलक
जीत को मकसद बनाना आ गया

हो  गयी नज़रें इनायत आपकी
हाथ में जैसे खज़ाना आ गया

फितरतें हिमकर सियासी हो गई
बात तुमको भी बनाना आ गया

© हिमकर श्याम 

[तस्वीर : फोटोग्राफिक क्लब रूपसी के अध्यक्ष श्रद्धेय डॉ सुशील कुमार अंकन जी की] 

6 comments:

  1. तितलियाँ भी बाग़ में आने लगीं
    देखिए मौसम सुहाना आ गया

    फितरतें हिमकर सियासी हो गई
    बात तुमको भी बनाना आ गया

    ..सीधे दिल को छू जाती हैं आपकी गजल
    ब्लॉग के तीन वर्ष पूरे होने पर हार्दिक बधाई..
    यूँ ही निरंतर आगे बढ़ता रहे आपका ये सफर ..हार्दिक शुभकामना है

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  2. सुन्दर ग़ज़ल

    ब्लॉग के तीन वर्ष पूरे होने पर बधाई.

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  3. सर्वप्रथम बधाई ३ वर्ष पूरे होने की ... अच्छा लगा आपका सफ़र ... ऐसे ही आगे चलता रहे ... आपकी लाजवाब एक से बढ़ के एक गजलें पढ़ते रहें ... गुनगुनाते रहें ...

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  4. अरे वाहन हिमकर जी तीन वर्ष हो गए पता ही नहीं चला एक से बढ़ के एक गजलें पढ़ने में डूब गये समय कब बिता मालूम नहीं
    चलिए ब्लॉग के तीन वर्ष पूरे होने पर बधाई :)

    सादर
    संजय भास्कर

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  5. ब्लॉग की तीसरी सालगिरह पर बहुत बहुत बधाई। आप निरंतर ऐसे ही आगे बढ़ाते रहे...यही शुभकामनाएं।

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