Monday, 2 January 2017

नया साल आया, मुबारक घड़ी है


यकीनन नज़र में चमक आरज़ी है 
महज़ चार दिन की यहाँ चाँदनी है

जिधर  देखिए  हाय तौबा मची है
हथेली पे सरसों भला कब उगी है

चराग ए मुहब्बत बचायें  तो  कैसे
यहाँ नफ़रतों की हवा चल पड़ी है

फ़क़त आंकड़ों में नुमायाँ तरक्की
यहाँ मुफलिसी दर-बदर फिर रही है

कहाँ तितलियाँ हैं, हुए गुम परिंदे
फिज़ाओं में किसने ज़हर घोल दी है

उधर कोई बस्ती जलायी गई है
धुँआ उठ रहा है, ख़बर सनसनी है

चला छोड़ हमको ये बूढ़ा दिसम्बर
किसी अजनबी सा खड़ा जनवरी है

नईं हैं उमीदें, ख़ुशी का समाँ है  
नया साल आया, मुबारक घड़ी है 

नहीं रब्त बाकी बचा कोई हिमकर   
जहाँ दोस्ती थी, वहाँ दुश्मनी है

© हिमकर श्याम  



[तस्वीर : पुरातत्वविद डॉ हरेंद्र प्रसाद सिन्हा जी की ]



5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-01-2017) को "नए साल से दो बातें" (चर्चा अंक-2575) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    नववर्ष 2017 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुंदर.नव वर्ष की शुभकामनाएं !
    नई पोस्ट :
    भुला नहीं देना जी भुला नहीं देना

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति
    नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  4. बहुत सुन्दर शब्द रचना
    नव वर्ष की मंगलकामनाएं
    http://savanxxx.blogspot.in

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  5. हकीकत भरे कुछ शेर और कुछ शेर नव वर्ष के आगाज़ में ... बहुत ही कमाल की ग़ज़ल है हिमकर जी ... नव वर्ष मंगलमय हो ...

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