छुपी है मुहब्बत भी इनकार में
अलग ही मज़ा ऐसे इकरार में
बहुत हमने ढूँढा न पाया उसेअलग ही मज़ा ऐसे इकरार में
अभी वक़्त बाकी है दीदार में
लबों पर हँसी अब दिखाई न दे
फ़क़त अश्क़ हासिल तेरे प्यार में
फ़क़त अश्क़ हासिल तेरे प्यार में
हुआ दिल पे नज़रों का ऐसा असर
मैं खोया रहा कूचा ए यार में
मैं खोया रहा कूचा ए यार में
यहीं पर मिले थे वो हमसे कभी
कई याद लिपटी है दीवार में
कई याद लिपटी है दीवार में
ग़मों को न इतना दबाया करो
खुलेगी कोई राह गुफ़्तार में
खुलेगी कोई राह गुफ़्तार में
कोई ज़ख़्म सीने में 'हिमकर' दबा
जिसे तुमने ढाला है अशआर में
जिसे तुमने ढाला है अशआर में
गुफ़्तार : बातचीत
© हिमकर श्याम
[पेंटिंग साभार प्रीति श्रीवास्तव जी ]
सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल.
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteSunder rachna...
ReplyDeleteMere blog ki new post par aapka swagat hai.
धन्यवाद
Deleteआभारी हूँ
ReplyDeleteधन्यवाद
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