Tuesday, 14 February 2017

छुपी है मुहब्बत भी इनकार में



छुपी है मुहब्बत भी इनकार में
अलग ही मज़ा ऐसे इकरार में
बहुत हमने ढूँढा न पाया उसे
अभी वक़्त बाकी है दीदार में

लबों पर हँसी अब दिखाई न दे
फ़क़त अश्क़ हासिल तेरे प्यार में
हुआ दिल पे नज़रों का ऐसा असर
मैं खोया रहा कूचा ए यार में
यहीं पर मिले थे वो हमसे कभी
कई याद लिपटी है दीवार में
ग़मों को न इतना दबाया करो
खुलेगी कोई राह गुफ़्तार में
कोई ज़ख़्म सीने में 'हिमकर' दबा
जिसे तुमने ढाला है अशआर में



गुफ़्तार : बातचीत


© हिमकर श्याम
  
[पेंटिंग साभार प्रीति श्रीवास्तव जी ] 
 




 
 

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