हवा विषैली हर तरफ़, मचा रही उत्पात।
क्रूर काल पहुँचा रहा, अंतस् को आघात।।
महामारी विकट हुई, बनी गले की फाँस।
हाँफ रही है ज़िंदगी, उखड़ रही है सांस।।
क्रूर काल पहुँचा रहा, अंतस् को आघात।।
महामारी विकट हुई, बनी गले की फाँस।
हाँफ रही है ज़िंदगी, उखड़ रही है सांस।।
चूक आकलन में हुई, मचा हुआ कुहराम।
हाल बुरा है देखिए, सिस्टम है नाकाम।।
सत्ता पाने के लिए, नेता हुए अधीर।
कोरोना का भय नहीं, घूम रहे हैं वीर।।
बस चुनाव की फ़िक्र में, शासक हैं मशगूल।
हर दिन ही वो तोड़ते, अपने नियम उसूल।।
मतलब अपना साध कर, बैठे आँखें फेर।
कैसे बचे यकीन अब, चारों ओर अँधेर।।
हाल बुरा है देखिए, सिस्टम है नाकाम।।
सत्ता पाने के लिए, नेता हुए अधीर।
कोरोना का भय नहीं, घूम रहे हैं वीर।।
बस चुनाव की फ़िक्र में, शासक हैं मशगूल।
हर दिन ही वो तोड़ते, अपने नियम उसूल।।
मतलब अपना साध कर, बैठे आँखें फेर।
कैसे बचे यकीन अब, चारों ओर अँधेर।।
त्राहि-त्राहि हर ओर है, सुने न कोई पीर।
सत्ता बहरी हो गई, बहरे शाह वज़ीर।।
सत्ता बहरी हो गई, बहरे शाह वज़ीर।।
प्राण-वायु को रोक कर, क़ीमत रहे वसूल।
ज़हर बाँटते जो रहे, उनसे आस फ़ुज़ूल।।
ज़हर बाँटते जो रहे, उनसे आस फ़ुज़ूल।।
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
(चित्र गूगल से साभार)
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 07-05-2021) को
"विहान आयेगा"(चर्चा अंक-4058) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित है.धन्यवाद
…
"मीना भारद्वाज"
महामारी का भीषण रूप दिखाई दे रहा है, लेकिन हर रात की सुबह होती है
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसार्थक संदर्भ उठाते दोहे ।
ReplyDeleteआज के हालात का उचित वर्णन करते दोहे....आभार....
ReplyDeleteआज का यथार्थ दिखाती सुंदर रचना।
ReplyDeleteसटीक और सामयिक दोहे...
ReplyDeleteकरोना काल का बाखूबी चित्रण है इन दोहों में ...
सुंदर
ReplyDeleteआज का सन्दर्भ व्यक्त करती सुन्दर रचना!
ReplyDeleteसामयिक दोहे...👍
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