Sunday, 25 April 2021

साँसत में है जान

 


महामारी मचा रहीसर्वत्र हाहाकार।
दूसरी लहर का कहरबेकाबू रफ्तार।।

लाइलाज यह मर्ज़ है, करता क्रूर प्रहार।
महाकाल के सामने, मानव है लाचार।।

घुला हवा में अब ज़हर, दाँव लगे हैं प्राण।
फैल रहा है संक्रमण, माँगे मिले न त्राण।।

ऊँच-नीच का भेद क्या, सारे एक समान।
छोटा हो या हो बड़ासाँसत में है जान।।

बड़ी भयावह त्रासदी, पड़ी काल की मार।
घर-घर ही बीमार है, सुने कौन चीत्कार।।

कब्रगाह में भीड़ है, लम्बी बहुत कतार।
जलती चिता समूह में, बिन अंतिम संस्कार।।

मौत खड़ी थी द्वार पर, मिला नहीं उपचार।
अपनों को काँधा नहीं, छूट गया संसार।।

तड़प- तड़प दम तोड़ते, लोग बड़े मजबूर।
विपदा के  इस दौर में, सजग रहें भरपूर।।

© हिमकर श्याम


(चित्र गूगल से साभार)

 

 

8 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति

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  2. कोरोना की भयावहता को दर्शाता मर्मस्पर्शी सृजन ।

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  3. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 30-04-2021) को
    "आशा पर संसार टिका है" (चर्चा अंक- 4052)
    पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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  4. कोरोना के कारण हालत बदतर हो गये हैं

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  5. हृदय स्पर्शी सृजन।
    सटीक शब्द चित्र उकेरा है आपने।

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  6. वाह ... गज़ब के शेर ...
    इस महामारी के दर्द की कसक ... हर शेर लाजवाब ...

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