(मुंबई हमले के पाँच साल)
तोड़ सरहद की
सारी हदें
लहरों की बंदिशें
एक शाम, अचानक
सपनों के शहर में
आवारा वहशी हवाएं
जागती जगमगाती
सड़कों के
चप्पे-चप्पे पर
बरपा गयी कहर
ताज, ओबरॉय, सीएसटी
लियोपॉड या
कोलाबा
ठिठक गयी हर
राहगुजर
बारूदी हवा के
घेरे में
रेस्तरा-बाजारें
गरीब निवाले
भुरभुरा जोश
नपुंसक रोष
यहूदियों की
बस्तियां
सैलानियों की
मस्तियां
चाय की चुस्कियां
अखबार की
सुर्खियां
बेबस, बेजार महानगर
छलकते जामों में
भ्रष्ट इंतजामों
में
टीआरपी खेलों में
आहों के मेलों
में
क्रिकेट मैदानों
में
सुरक्षा की सेंधमारी
में
नाकाम पहरेदारी
में
सस्ती शहादतों
में
नाउम्मीद इबादतों
में
था खौफ का असर
अदृश्य राहें
नापाक मंसूबे
न ठहराव
न ठिकाना
आतंक के चादर तले
निजात का हर
मंत्र
घुटनों पर
जनतंत्र
बेलगाम, बेतहाशा
फिजां में घुल
रहा
जेहाद का जहर
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सजीव चित्रण...
ReplyDeleteहार्दिक आभार...
ReplyDelete२६ नवम्बर का सजीव चित्रण ...
ReplyDeleteसच में वो कहर का दिन था ... काला दिन जिस दिन इंसानियत हारी थी ...
आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया सदा ही कुछ बेहतर करने को उत्साहित करती रही हैं. आभार
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