मील के पत्थर गवाह हैं
उस यात्रा के
तय किया था हमने कभी
जो साथ-साथ
उस यात्रा की निशानियाँ
मौजूद हैं
आज भी उस राह पर
तुम्हारे स्पर्श की खुशबू
मौजूद है
उन फिजाओं में अब तक
लिखी है हर शै पर
प्यार की गाथा
देते हैं गवाही
पक्षी, बादल, पेड़, आकाश
चाहतों की पोटली
काँधे पर उठाए
अनगिनत सपने
मुट्ठी में छिपाए
निकल आये थे हम
दुनिया से बहुत दूर
उसी राह पर लिखा था
मुहब्बत का पहला गीत
दरख्तों पर लिखी थी
दरख्तों पर लिखी थी
इश्क़ की प्यारी नज़्म
और एक दिन
आया मोड़ अनचाहा
रह गया कुछ अनकहा
वक़्त ने रची
रह गया कुछ अनकहा
वक़्त ने रची
हमारे खिलाफ
कुछ ऐसी साजिश
कि मौन हो गई
प्यार की मधुर कविता
बेसुरे हो गये गीत
जुदा हो गए राह हमारे
अलग हो गयीं दिशाएँ
छूट गया साथ
हमेशा-हमेशा के लिए
फिर भटकता रहा मैं
दिशाहारा परिंदे की तरह
यहाँ-वहाँ
न जाने कहाँ-कहाँ
मिली नहीं कभी
मंजिल मुझको
है मगर दिल में यकीन
पहुँच गयी होगी तुम
अपनी मंजिल तक
देखता हूँ मुड़कर
उस राह को अक्सर
सोचता हूँ रुक कर
उस मोड़ पर
कि जो हुआ उसे यूँ ही
होना था या और भी
कुछ हो सकता था।
© हिमकर श्याम
(तस्वीर मेरे छोटे भाई रोहित कृष्ण की, जिसे फोटोग्राफी बेहद पसंद है)
जीवन का रंग ये भी । कई बार समय और परिस्थितियां रिश्तों की दिशा तय करती हैं ।
ReplyDeleteWell worded and a beautiful click....
हृदय से आभार!
Deleteजीवन के रंग अलग-अलग हैं.
ReplyDeleteनई पोस्ट : इक हंसी सौ अफ़साने
हार्दिक आभार!
Deleteकभी अनचाहा कुछ ऐसा ही हो जाता है
ReplyDeleteहाँ मनचाहा साथ हो तो आसानी से जिंदगी का सफर तय हो जाता है !
बहुत सुन्दर रचना, भाई की फोटोग्रफी सुन्दर है इस कविता के अनुरूप चित्र है !
हृदय से आभार, आदरणीया!
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको !
हृदय से आभार आदरणीय !
Deleteशायद यही जीवन यात्रा है जहां हर मोड़ एक चाहे अनचाहे सम्बन्ध दे जाता है और कुछ मुड़ जाते हैं किसी और दिशा में ..बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteहृदय से आभार आदरणीय !
Deleteहार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शनिवार (11-04-2015) को "जब पहुँचे मझधार में टूट गयी पतवार" {चर्चा - 1944} पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चामंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद, आदरणीय !
Deleteबेहतरीन पंक्तियाँ
ReplyDeleteati uttam
ReplyDeleteहृदय से आभार!
Deleteअक्सर हो जाने के बाद के बाद ऐसा ही लगता है की क्या कुछ और भी हो सकता था .... जो होता है उससे इंसान संतुष्ट भी कहाँ रह पाता है ... गहरे प्रेम और विरक्ति का भाव लिए संवेदनशील रचना ...
ReplyDeleteहृदय से आभार!
Deleteअहसासों से लवरेज़..अंतर्मन की तह से लिखी बेहद संवेदनशील रचना। सैंकड़ों दिलों में कुछ ऐसी ही टीस, कुछ ऐसी ही कसक हिलोरें ले रही है।
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
ReplyDeleteजीवन में हर मोड़ कुछ न कुछ नया ले के आता है,शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कविता
हृदय से आभार !
Deleteबहुत भावपूर्ण ,सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteहृदय से आभार, आदरणीया!
Deleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteजीवन में एक ैसा मोड आता है जब अपने पराये हो जाते हैं। पर जीवन चलता रहता है चलना चाहिये भी। दिल पर एक दाग लेकर ही सही।
ReplyDeleteहृदय से आभार, आदरणीया!
Deleteसचमुच मील के पत्थर गवाह हैं हमारी जिंदगी के।
ReplyDeleteहार्दिक आभार !
Deleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
स्वागत व आभार !
Deleteस्वागत व आभार !
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब लिखा है आपने! गहरी सोच के साथ शानदार रचनाएँ और साथ ही सुन्दर चित्र के साथ उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबेहतरीन। बढ़िया ब्लॉग और एक से बढ़कर एक सुंदर रचनाएँ
ReplyDeleteस्वागत है आपका...ब्लॉग से जुड़ने और बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!!
Deletebahut sundar kavita .
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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