बाँधते हैं उमीदें, रखें हौसला
हमने सीखी परिंदों से ऐसी अदा
साथ लेकर इरादे सफ़र में चलो
राह रोके खड़ीं है मुखालिफ़ हवा
जिस तरफ देखिए हैं उधर ग़मज़दा
ढूंढते फिर रहे सब ख़ुशी का पता
यह तो अच्छा हुआ जो भुलाया उन्हें
उनको फुर्सत कहाँ जो रखें वास्ता
हम न समझे कभी ये सियासी जुबाँ
तर्जुमा अलहदा और बातें जुदा
मिट गयी वो बगावत की तहरीर सब
बिक गए चंद सिक्कों में जो रहनुमा
सूझता ही नहीं अब कोई रास्ता
है नज़र में मेरे बस ख़ला ही ख़ला
काम आती नहीं है दवा या दुआ
संगदिल ज़िंदगी पर अभी आसरा
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
बहुत बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteखुशियों मत ढूंढ़ों यहां वहां क्योंकि खुशियां तो यहीं हैं, यहीं हैं, यहीं हैं.....।
ReplyDeleteसही कहा, शुक्रिया
Deleteबहुत सुंदर रचना | होसला रखना हम परिंदो से ही सीख सकते हैं |
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया
Deleteकमाल का लिखते हैं आप. नीचे की लाइन तो लाजवाब है आभार
ReplyDeleteहम न समझे कभी ये सियासी जुबाँ
तर्जुमा अलहदा और बातें जुदा
शुक्रगुजार हूँ आपका
Deleteजिस तरफ देखिए हैं उधर ग़मज़दा
ReplyDeleteढूंढते फिर रहे सब ख़ुशी का पता
क्या बात है बहुत सुन्दर, सभी एक से एक, सटीक रचना !
शुक्रगुजार हूँ आपका
Deleteहम न समझे कभी ये सियासी जुबाँ
ReplyDeleteतर्जुमा अलहदा और बातें जुदा
...वाह...सभी अशआर बहुत सटीक और उम्दा..
शुक्रगुजार हूँ आपका
Deleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
Deleteमिट गयी वो बगावत की तहरीर सब
ReplyDeleteबिक गए चंद सिक्कों में जो रहनुमा ..
हकीकत बयान करते शेर हैं सभी ... आज के माहोल को आइना दिखाते हुए ... बहुत लाजवाब ...
शुक्रगुजार हूँ आपका
Deletesarthak or sundar rachna...
ReplyDeleteजिस तरफ देखिए हैं उधर ग़मज़दा
ReplyDeleteढूंढते फिर रहे सब ख़ुशी का पता
यह तो अच्छा हुआ जो भुलाया उन्हें
उनको फुर्सत कहाँ जो रखें वास्ता
हम न समझे कभी ये सियासी जुबाँ
तर्जुमा अलहदा और बातें जुदा
शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने हिमकर जी
शुक्रगुजार हूँ आपका
DeleteLaajwaab ghazal likhi hai aapne. bahut achha laga.
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया
Deleteशुक्रिया आपका
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