Wednesday, 21 October 2015

विजय पर्व पर कीजिए, पापों का संहार


जगत जननी जगदम्बिकासर्वशक्ति स्वरूप।
दयामयी दुःखनाशिनीनव दुर्गा नौ रूप।। 
शक्ति पर्व नवरात्र मेंशुभता का संचार।
भक्तिपूर्ण माहौल सेहोते शुद्ध विचार ।। 
जयकारे से गूंजतादेवी का दरबार।
माता के हर रूप कोनमन करे संसार।।
माँ अम्बे के ध्यान सेमिट जाते सब कष्ट।
रोग शोक संकट सभीहो जाते हैं नष्ट।।


कामक्रोधमदमोहछलअन्यायअहंकार।
रावण की सब वृत्तियाँमन के विषम विकार।।
विजय पर्व पर कीजिएपापों का संहार।
रावण भीतर है छुपाकरिए उस पर वार।। 

[दुर्गा पूजा, विजयादशमी और दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ]


©हिमकर श्याम 


(चित्र गूगल से साभार)





11 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (22-10-2015) को "हे कलम ,पराजित मत होना" (चर्चा अंक-2137)   पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    विजयादशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. आभारी हूँ आदरणीय

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...विजय पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. काम, क्रोध, मद, मोह, छल, अन्याय, अहंकार।
    रावण की सब वृत्तियाँ, मन के विषम विकार।।
    विजय पर्व पर कीजिए, पापों का संहार।
    रावण भीतर है छुपा, करिए उस पर वार।।
    ..सार्थक सामयिक चिंतन प्रस्तुति ...
    आपको भी विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!

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  4. आभारी हूँ संजय जी

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  5. सुन्दर प्रस्तुति...विजय पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

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  6. सुन्दर शब्द रचना
    हार्दिक शुभकामनाएँ
    http://savanxxx.blogspot.in

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  8. बेहतरीन प्रस्तुति

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  9. Sunder prastuti. Apane bheetar ke Rawan ko Nasht karana jaroori hai.

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  10. सराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का आभार! सादर

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