जगत जननी जगदम्बिका, सर्वशक्ति स्वरूप।
दयामयी दुःखनाशिनी, नव दुर्गा नौ रूप।।
शक्ति पर्व नवरात्र में, शुभता का संचार।
भक्तिपूर्ण माहौल से, होते शुद्ध विचार ।।
जयकारे से गूंजता, देवी का दरबार।
माता के हर रूप को, नमन करे संसार।।
माँ अम्बे के ध्यान से, मिट जाते सब कष्ट।
रोग शोक संकट सभी, हो जाते हैं नष्ट।।
काम, क्रोध, मद, मोह, छल, अन्याय, अहंकार।
रावण की सब वृत्तियाँ, मन के विषम विकार।।
विजय पर्व पर कीजिए, पापों का संहार।
रावण भीतर है छुपा, करिए उस पर वार।।
[दुर्गा पूजा, विजयादशमी और दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ]
©हिमकर श्याम
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (22-10-2015) को "हे कलम ,पराजित मत होना" (चर्चा अंक-2137) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
विजयादशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभारी हूँ आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...विजय पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteकाम, क्रोध, मद, मोह, छल, अन्याय, अहंकार।
ReplyDeleteरावण की सब वृत्तियाँ, मन के विषम विकार।।
विजय पर्व पर कीजिए, पापों का संहार।
रावण भीतर है छुपा, करिए उस पर वार।।
..सार्थक सामयिक चिंतन प्रस्तुति ...
आपको भी विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!
आभारी हूँ संजय जी
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...विजय पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteसुन्दर शब्द रचना
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ
http://savanxxx.blogspot.in
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteSunder prastuti. Apane bheetar ke Rawan ko Nasht karana jaroori hai.
ReplyDeleteसराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का आभार! सादर
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