Tuesday, 27 October 2015

नेह लुटाती चाँदनी


शीतलउज्जवल रश्मियाँबरसे अमृत धार।
नेह लुटाती चाँदनीकर सोलह श्रृंगार।।

शरद पूर्णिमा रात मेंखिले कुमुदनी फूल।
रास रचाए मोहनाकालिंदी के कूल।।

सोलह कला मयंक की, आश्विन पूनो ख़ास।
उतरी धरा पर माँ श्री, आया कार्तिक मास।।

लक्ष्मी की आराधना, अमृतमय खीर पान।
पूर्ण हो मनोकामना, बढे मान-सम्मान।। 

© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)

15 comments:

  1. शरद पूर्णिमा पर बहुत सुन्दर दोहे...

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2144 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  3. शरद पूर्णिमा का अद्भुत चाँद ...बहुत सुन्दर रचना
    शरद पूर्णिमा की मंगलकामनाएं!

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  4. चल पनघट
    तूं चल पनघट में तेरे पीछे पीछे आता हूँ
    देखूं भीगा तन तेरा ख्वाब यह सजाता हूँ
    मटक मटक चले लेकर तू जलभरी गगरी
    नाचे मेरे मन मौर हरपल आस लगाता हूँ
    जब जब भीगे चोली तेरी भीगे चुनरिया
    बरसों पतझड़ रहा मन हरजाई ललचाता हूँ
    लचक लचक कमरिया तेरी नागिनरूपी बाल
    आह: हसरत ना रह जाये दिल थाम जाता हूँ

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  5. सुन्दर प्रस्तुति

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  6. बहुत सुंदर चि‍त्रण

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  7. बहुत ही सुंदर रचना। खूबसूरत चित्रण।

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  8. सराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का आभार! सादर

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  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  10. ..... सुन्दर दोहे...खूबसूरत चित्रण

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