शीतल, उज्जवल रश्मियाँ, बरसे अमृत धार।
नेह लुटाती चाँदनी, कर सोलह श्रृंगार।।
शरद पूर्णिमा रात में, खिले कुमुदनी फूल।
रास रचाए मोहना, कालिंदी के कूल।।
सोलह कला मयंक की, आश्विन पूनो ख़ास।
उतरी धरा पर माँ श्री, आया कार्तिक मास।।
लक्ष्मी की आराधना, अमृतमय खीर पान।
पूर्ण हो मनोकामना, बढे मान-सम्मान।।
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
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बहुत सुंदर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : गजरे में बांध लिया मन
शरद पूर्णिमा पर बहुत सुन्दर दोहे...
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2144 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आभारी हूँ
Deleteशरद पूर्णिमा का अद्भुत चाँद ...बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteशरद पूर्णिमा की मंगलकामनाएं!
चल पनघट
ReplyDeleteतूं चल पनघट में तेरे पीछे पीछे आता हूँ
देखूं भीगा तन तेरा ख्वाब यह सजाता हूँ
मटक मटक चले लेकर तू जलभरी गगरी
नाचे मेरे मन मौर हरपल आस लगाता हूँ
जब जब भीगे चोली तेरी भीगे चुनरिया
बरसों पतझड़ रहा मन हरजाई ललचाता हूँ
लचक लचक कमरिया तेरी नागिनरूपी बाल
आह: हसरत ना रह जाये दिल थाम जाता हूँ
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्रण
ReplyDeleteस्वागत व आभार
Deleteबहुत ही सुंदर रचना। खूबसूरत चित्रण।
ReplyDeleteसराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का आभार! सादर
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार
Delete..... सुन्दर दोहे...खूबसूरत चित्रण
ReplyDeleteआभार
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