Sunday, 14 February 2016

किसी की चाह सीने में जगा कर देखते हैं


मुहब्बत की हक़ीक़त आज़मा कर देखते हैं
किसी की चाह सीने में जगा कर देखते हैं

ज़मीनों आसमा के फासले मिटते न देखे  
चलो हम आज ये दूरी मिटा कर देखते हैं

ये कैसी आग है इसमे फ़ना होते हैं कितने
कभी इस आग में खुद को जला कर देखते हैं

बड़ी बेदर्द दुनिया है बड़ा खुदसर जमाना
किसी के दर्द को अपना बना कर देखते हैं

तुम्हारी याद की खुशबू अभी तक आ रही है  
पुरानी डायरी अपनी उठाकर देखते हैं

उन्हें देखे से लगता है पुरानी आशनासाई
यकीं आ जाएगा नज़दीक जाकर देखते है

उमीदें हैं अभी रौशन रगों में है रवानी
गुज़रते वक़्त से लम्हा चुरा कर देखते हैं

भरोसा क्या लकीरों का, मुक़द्दर से गिला क्या  
खफ़ा है ज़िन्दगी हिमकर मनाकर देखते हैं 


© हिमकर श्याम


(चित्र गूगल से साभार)

12 comments:

  1. शुक्रगुज़ार हूँ।

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  2. शुक्रगुज़ार हूँ।

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  3. ये कैसी आग है जिसमे फ़ना होते हैं कितने
    कभी इस आग में खुद को जला कर देखते हैं ..
    वाह प्रेम के रंग में पगी ... परिपक्व प्रेम भाव लिए लाजवाब शेरो से सजी ग़ज़ल ...

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  4. उमीदें हैं अभी रौशन रगों में है रवानी
    गुज़रते वक़्त से लम्हा चुरा कर देखते हैं

    भरोसा क्या लकीरों का, मुक़द्दर से गिला क्या
    खफ़ा है ज़िन्दगी हिमकर मनाकर देखते हैं

    वाह, प्रेम पगी खूबसूरत गज़ल।

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  5. बहुत बढिया प्रस्तुति

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  6. सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  7. बढ़िया गजल, एक से एक सभी शेर लाजवाब है !

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  8. बेहद शानदार गज़ल। बहुत ही सुंदर शब्दों से रची हुई रचना की प्रस्तुति। अच्छी प्रस्तुति के लिए आपका आभार।

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  9. बहुत सुन्दर और सार्थक ग़ज़ल...

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  10. सुन्दर ग़ज़ल

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  11. सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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