मुहब्बत की हक़ीक़त आज़मा कर देखते हैं
किसी की चाह सीने में जगा कर देखते हैं
किसी की चाह सीने में जगा कर देखते हैं
ज़मीनों आसमा के फासले मिटते न देखे
चलो हम आज ये दूरी मिटा कर देखते हैं
ये कैसी आग है इसमे फ़ना होते हैं कितने
कभी इस आग में खुद को जला कर देखते हैं
कभी इस आग में खुद को जला कर देखते हैं
बड़ी बेदर्द दुनिया है बड़ा खुदसर जमाना
किसी के दर्द को अपना बना कर देखते हैं
किसी के दर्द को अपना बना कर देखते हैं
तुम्हारी याद की खुशबू अभी तक आ रही है
पुरानी डायरी अपनी उठाकर देखते हैं
पुरानी डायरी अपनी उठाकर देखते हैं
उन्हें देखे से लगता है पुरानी आशनासाई
यकीं आ जाएगा नज़दीक जाकर देखते है
यकीं आ जाएगा नज़दीक जाकर देखते है
उमीदें हैं अभी रौशन रगों में है रवानी
गुज़रते वक़्त से लम्हा चुरा कर देखते हैं
गुज़रते वक़्त से लम्हा चुरा कर देखते हैं
भरोसा क्या लकीरों का, मुक़द्दर से गिला क्या
खफ़ा है ज़िन्दगी हिमकर मनाकर देखते हैं
खफ़ा है ज़िन्दगी हिमकर मनाकर देखते हैं
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
शुक्रगुज़ार हूँ।
ReplyDeleteशुक्रगुज़ार हूँ।
ReplyDeleteलाजवाब रचना
ReplyDeleteये कैसी आग है जिसमे फ़ना होते हैं कितने
ReplyDeleteकभी इस आग में खुद को जला कर देखते हैं ..
वाह प्रेम के रंग में पगी ... परिपक्व प्रेम भाव लिए लाजवाब शेरो से सजी ग़ज़ल ...
उमीदें हैं अभी रौशन रगों में है रवानी
ReplyDeleteगुज़रते वक़्त से लम्हा चुरा कर देखते हैं
भरोसा क्या लकीरों का, मुक़द्दर से गिला क्या
खफ़ा है ज़िन्दगी हिमकर मनाकर देखते हैं
वाह, प्रेम पगी खूबसूरत गज़ल।
बहुत बढिया प्रस्तुति
ReplyDeleteसार्थक व प्रशंसनीय रचना...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।
बढ़िया गजल, एक से एक सभी शेर लाजवाब है !
ReplyDeleteबेहद शानदार गज़ल। बहुत ही सुंदर शब्दों से रची हुई रचना की प्रस्तुति। अच्छी प्रस्तुति के लिए आपका आभार।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक ग़ज़ल...
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteसार्थक व प्रशंसनीय रचना...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।