दिल से दिल के दीप जलाएँ
आँसू की यह लड़ियाँ टूटे
खुशियों की फुलझड़ियाँ छूटे
शोषण, पीड़ा, शोक भुलाएँ
दिल से दिल के दीप जलाएँ
कितने दीप जल नहीं पाते
कितने दीप बुझ बुझ जाते
दीपक राग मिलकर गाएँ
दिल से दिल के दीप जलाएँ
बाहर बाहर उजियारा है
भीतर गहरा अँधियारा है
अंतर्मन में ज्योति जगाएँ
दिल से दिल के दीप जलाएँ
मंगलघट कण कण में छलके
कोई उर ना सुख को तरसे
हर धड़कन की प्यास बुझाएँ
दिल से दिल के दीप जलाएँ
आलोकित हो सबका जीवन
बरसे वैभव आँगन आँगन
निष्ठुर तम हम दूर भगाएँ
दिल से दिल के दीप जलाएँ
रोशन धरती, रोशन नभ हो
शुभ ही शुभ हो, अब ना अशुभ हो
कुछ ऐसी हो दीपशिखाएँ
दिल से दिल के दीप जलाएँ
[हिंदी तिथि के अनुसार आज इस ब्लॉग के एक वर्ष पूरे हो गए हैं. गत वर्ष दीपावली के दिन ब्लॉग पर लेखन आरम्भ किया था. समस्त ब्लॉगर मित्रों, पाठकों, शुभचिन्तकों, प्रशंसकों, आलोचकों का हार्दिक धन्यवाद... अपना स्नेह ऐसे ही बनाये रखें…]
© हिमकर श्याम
दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ
ReplyDeleteहार्दिक आभार...मंगलकामनाएँ...
Deleteसुंदर
ReplyDeleteआभार...मंगलकामनाएँ...
Deleteहार्दिक बधाई एवं दीपोत्सव की शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआभार...मंगलकामनाएँ..
DeleteYahi deep to jalana sabse jyada avashayk hai ... Bahut sunder saarthak prastuti... Aapko dipawali ki mangalkamnaayein.....
ReplyDeleteआभार...मंगलकामनाएँ..
Deleteआपकी ये रचना चर्चामंच http://charchamanch.blogspot.in/ पर चर्चा हेतू 25 अक्टूबर को प्रस्तुत की जाएगी। आप भी आइए।
ReplyDeleteस्वयं शून्य
स्वागत व आभार राजीव जी...मंगलकामनाएँ...
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (25-10-2014) को "तुम ठीक तो हो ना....भइया दूज की शुभकामनाएँ" (चर्चा मंच-1772) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
प्रकाशोत्सव के महान त्यौहार दीपावली से जुड़े
पंच पर्वों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी ...मंगलकामनाएँ...
Deleteचलो आज हम दीप जलाएं
ReplyDeleteतिमिर धरा से आज भगाएं
तन मन पवन कर के अपना
दीन दुखी की व्यथा मिटाएँ
बहुत ख़ूब...मंगलकामनाएँ...
Deleteशुभ प्रभात ............ खुबसूरत अभिव्यक्ति ..... उम्दा गजल
ReplyDeleteहार्दिक आभार...मंगलकामनाएँ...
Deleteमंगलघट कण कण में छलके
ReplyDeleteकोई उर ना सुख को तरसे
हर धड़कन की प्यास बुझाएँ
दिल से दिल के दीप जलाएँ
हर पंक्ति प्रकाशमय
साभार !
स्वागत व आभार...ब्लॉग से जुड़ने के लिए हार्दिक धन्यवाद...
Deleteआलोकित हो सबका जीवन
ReplyDeleteबरसे वैभव आँगन आँगन
निष्ठुर तम हम दूर भगाएँ
दिल से दिल के दीप जलाएँ ..
दीप तो दिल से दिल के ही जलाने पड़ेंगे .... दीपावली तो साल में एक बार आती है ... हस एहसास कराने, राद दिलाने की दिल के दीप जगाओ ... सुन्दर भावमय रचना दीपों के पर्व पर ...
निष्ठुर तम हम दूर भगाएँ ....एक आशावादी सोच ! बहुत आवश्यक है, इस अंधकार को दूर करना ! काश, सभी ऐसा सोच सकें !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव ..प्यारी रचना ..दिल से दिल के दीप जलाएं
ReplyDeleteहिमकर भाई आप सपरिवार तथा मित्रों को भी दीपावली की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं माँ लक्ष्मी और प्रभु गणपति उजाला और समृद्धि जीवन में भर दें
भ्रम र ५
हार्दिक आभार...मंगलकामनाएँ...
Deleteबेहद उम्दा और बेहतरीन सामयिक प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले/
नयी पोस्ट@श्री रामदरश मिश्र जी की एक कविता/कंचनलता चतुर्वेदी
सुन्दर शुभ रस्तुतीक्रण !
ReplyDeleteस्वागत व आभार...
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