Sunday 23 February 2014

अज़मे सफ़र सरों पे उठाना है दूर तक


अज़मे सफ़र सरों पे उठाना है दूर तक
ले ज़िन्दगी को साथ में जाना है दूर तक

परछाइयां भी छोड़ गयी साथ अब मेरा
पर ग़म को मेरा साथ निभाना है दूर तक

जी भर के ज़िन्दगी से करें प्यार कैसे हम
आहो व आंसुओं का ख़ज़ाना है दूर तक

जिस राह पे खड़ी थीं हवाएं वो सिरफिरी
उस राह पे चराग जलाना है दूर तक

ये जिन्दगी नहीं है वफाओं का सिलसिला,
सांसों के टूटने का फसाना है दूर तक

आता नहीं करार दिले बेकरार को
बेचैनियों को अपनी भुलाना है दूर तक


©हिमकर श्याम


(चित्र गूगल से साभार) 

अज़मे सफ़र : सफ़र का संकल्प 

22 comments:

  1. ये जिन्दगी नहीं है वफाओं का सिलसिला,
    सांसों के टूटने का फसाना है दूर तक

    आता नहीं करार दिले बेकरार को
    बेचैनियों को अपनी भुलाना है दूर तक..

    बहुत खूब....

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  2. सहज, सरल शब्दों में लिखी मन को छू जाने वाली सुन्दर पंक्तियों के लिए हार्दिक बधाई...|

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  3. परछाइयां भी छोड़ गयी साथ अब मेरा
    पर ग़म को मेरा साथ निभाना है दूर तक ..

    बहुत खूब ... लाजवाब शेर कहा है ये ... वैसे पूरी गज़ल मस्त है ...

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  4. जिस राह पे खड़ी थीं हवाएं वो सिरफिरी
    उस राह पे चराग जलाना है दूर तक
    ...बहुत खूब...सभी अशआर दिल को छूते हुए...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

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  5. परछाइयां भी छोड़ गयी साथ अब मेरा
    पर ग़म को मेरा साथ निभाना है दूर तक
    श्याम भाई ...सभी अशआर दिल को छूते हुए...ख़ूबसूरत ....
    जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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  6. आप सबों का बहुत-बहुत शुक्रिया...ब्लॉग पर आने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए..

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  7. रोक ले ,तू जितना भी हम को रोक सके
    मैंने भी ठाना,जाना है मुझे भी दूर तक .....

    शुभकामनाये,स्वस्थ रहें .......

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    1. वाह, बहुत खूब... स्वागत व आभार...

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  8. राजीव जी, चर्चा मंच पर मेरी रचना लेने के लिए तहे दिल से शुक्रिया... ब्लॉग से जुड़ने के लिए आभार.

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  9. इक अहले-मुक़ाम ब-शिद्दत तिरी रह तके..,
    ज़रखेज़ जमीं औ आबोदाना है दूर तक.....

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    1. उम्दा...बहुत ज़रखेज़ है फ़िक्र की ज़मीन...खुशामदीद व शुक्रिया...

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  10. बैल : -- कितनी ज़रखेज़ जमीं है,
    गाँय : -- ज़रखेज़ जमीं से आपका क्या मतलब है जी ! अब है तो चर ही जाओगे क्या.....

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    1. यह भी खूब रही...ब्लॉग पर आने और इससे जुड़ने के लिए शुक्रिया...

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  11. वाह बहुत खूब . बेहतरीन ग़ज़ल..

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  12. बहुत ही खूबसूरत एवं मुकम्मल ग़ज़ल .. बधाई ..

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  13. जिस राह पे खड़ी थीं हवाएं वो सिरफिरी
    उस राह पे चराग जलाना है दूर तक ....बहुत खूब !!!

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    1. आपका बहुत बहुत शुक्रिया...

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  14. ये जिन्दगी नहीं है वफाओं का सिलसिला,

    सांसों के टूटने का फसाना है दूर तक......................बहुत खूब आदरणीय!

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  15. ये जिन्दगी नहीं है वफाओं का सिलसिला,
    सांसों के टूटने का फसाना है दूर तक

    वाह! बहुत खूब कही है यह पूरी ग़ज़ल .
    मेरी तरफ से अर्ज़ है.....
    यूँ तो बीच राह 'ज़िन्दगी' ने कह दिया अलविदा
    पर मुझे तो अपना वादा निभाना है दूर तक !

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    1. बहुत खूब, लाजवाब... दिली दाद कुबूल करें....हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया...

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