सुना था बुजुर्गों से
बचपन में हमने कि
खाली दिमाग शैतान का घर
इस फ़लसफ़े को गढ़नेवाले
या फिर इसे कहनेवाले
भूल गये होंगे यह बताना
या विचारा नहीं होगा कि
खाली पेट शैतान का घर
क्योंकि खाली पेट में भी
बसता है एक शैतान
जो भारी पड़ता है
खाली दिमागवाले शैतान पर
भूख की ज्वाला में
झुलस जाती है संवेदनाएँ
सारे आदर्श, सारे ईमान
भूल जाता है इंसान
सारे मान-अभिमान
कायदे-कानून, बुरा-भला
नैतिकता, हर फ़लसफ़ा
अभावों के जीवाणु
हर पल करवाते है
हालात से समझौता
भूख ने ही बनाया था
आदि मानव की खानाबदोश
तिल-तिल जलने की पीड़ा
निगल जाती है आदमीयत
खत्म हो जाती है फिर
सोचने-समझने की शक्ति
आदमी हो जाता है तैयार
पशुवत जीने के लिए
क्षुधा मिटाने की खातिर
बन जाता है वह खतरनाक
भर जाता है उसमें वहशीपन
भोजन के अलावा नहीं है
भूख का कोई विकल्प
पापी पेट के लिए
क्या-क्या नहीं करता है
इंसान
जब भूख ने किया था परेशान
विश्वामित्र ने खाया था
श्वान
भूख आदमी को
बना देती है लाचार
करवाती है अपराध
मंगवाती है भीख
बिकवाती है ज़िस्म
नहीं कर सकता कोई
भूख की अवहेलना
क्योंकि मरने से अधिक
श्रेयस्कर है जीते रहना।
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-08-2015) को "भारत है गाँवों का देश" (चर्चा अंक-2062) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत-बहुत आभार आदरणीय
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 10 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद! "
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार आदरणीया
Deleteबहुत दर्दनाक होता है भूख सहते हुए व्यक्ति को देख लेना ... :-( बचपन में एक बार जूठी पत्तल से एक भिखारिन को खाते देखा था ....आज ४० वर्षों बाद भी लगता है वो मेरे बगल में खड़ी है ...:-(
ReplyDeleteसच कहा, आभारी हूँ आदरणीया
Deleteमार्मिक और सच्ची अभिव्यक्ति , सच है यह बुनियाद ज़रुरत ही पूरी ना हो तो इंसान सही गलत क्या सोचे ?
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
ReplyDeleteअभावों के जीवाणु
हर पल करवाते है
हालात से समझौता
चाट जाते हैं मनुष्यत्व को
बेबाक राय. बधाई हिमकर जी इस सुंदर प्रस्तुति के लिए.
सुंदर रचना ।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, काकोरी काण्ड की ९० वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभारी हूँ
Deleteव्यथा है ये भूख कि
ReplyDeleteभटकते हुए इंसान की
उम्दा हिमकर जी
sundar n sarthak..behad umda..
ReplyDeleteभूख इन्सान को इन्सान को दो राहों पर ल कर खड़ा कर देती है ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने ।
ReplyDeleteभूख आदमी को
ReplyDeleteबना देती है लाचार
करवाती है अपराध
मंगवाती है भीख
बिकवाती है ज़िस्म
नहीं कर सकता कोई
भूख की अवहेलना
क्योंकि मरने से अधिक
श्रेयस्कर है जीते रहना।
बहूत बढिया...
मार्मिक रचना.
ReplyDeleteभूख आदमी की सबसे बड़ी लाचारी है...बहुत सार्थक और मर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteशत-प्रतिशत सत्य लिखा है.
ReplyDeleteसच की अभिव्यक्ति है ये रचना ... सच है की खाली पेट खूनी क्रान्ति को जनम देता है ...
ReplyDeletesaty kaha badhiya rachana !
ReplyDeleteभूख आदमी की सबसे बड़ी लाचारी है
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