Saturday 8 August 2015

खाली पेट का शैतान


सुना था बुजुर्गों से
बचपन में हमने कि
खाली दिमाग शैतान का घर
इस फ़लसफ़े को गढ़नेवाले
या फिर इसे कहनेवाले
भूल गये होंगे यह बताना
या विचारा नहीं होगा कि
खाली पेट शैतान का घर
क्योंकि खाली पेट में भी
बसता है एक शैतान
जो भारी पड़ता है
खाली दिमागवाले शैतान पर

भूख की ज्वाला में
झुलस जाती है संवेदनाएँ
सारे आदर्श, सारे ईमान
भूल जाता है इंसान
सारे मान-अभिमान
कायदे-कानून, बुरा-भला 
नैतिकता, हर फ़लसफ़ा 
अभावों के जीवाणु
हर पल करवाते है   
हालात से समझौता 
चाट जाते हैं मनुष्यत्व को

भूख ने ही बनाया था 
आदि मानव की खानाबदोश
तिल-तिल जलने की पीड़ा  
निगल जाती है आदमीयत
खत्म हो जाती है फिर
सोचने-समझने की शक्ति 
आदमी हो जाता है तैयार
पशुवत जीने के लिए
क्षुधा मिटाने की खातिर
बन जाता है वह खतरनाक
भर जाता है उसमें वहशीपन

भोजन के अलावा नहीं है
भूख का कोई विकल्प
पापी पेट के लिए
क्या-क्या नहीं करता है इंसान 
जब भूख ने किया था परेशान
विश्वामित्र ने खाया था श्वान
भूख आदमी को
बना देती है लाचार
करवाती है अपराध 
मंगवाती है भीख 
बिकवाती है ज़िस्म
नहीं कर सकता कोई
भूख की अवहेलना
क्योंकि मरने से अधिक
श्रेयस्कर है जीते रहना

© हिमकर श्याम


(चित्र गूगल से साभार)

23 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-08-2015) को "भारत है गाँवों का देश" (चर्चा अंक-2062) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत-बहुत आभार आदरणीय

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 10 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद! "

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    1. बहुत-बहुत आभार आदरणीया

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  3. बहुत दर्दनाक होता है भूख सहते हुए व्यक्ति को देख लेना ... :-( बचपन में एक बार जूठी पत्तल से एक भिखारिन को खाते देखा था ....आज ४० वर्षों बाद भी लगता है वो मेरे बगल में खड़ी है ...:-(

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    1. सच कहा, आभारी हूँ आदरणीया

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  4. मार्मिक और सच्ची अभिव्यक्ति , सच है यह बुनियाद ज़रुरत ही पूरी ना हो तो इंसान सही गलत क्या सोचे ?

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  5. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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  6. अभावों के जीवाणु
    हर पल करवाते है
    हालात से समझौता
    चाट जाते हैं मनुष्यत्व को

    बेबाक राय. बधाई हिमकर जी इस सुंदर प्रस्तुति के लिए.

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  7. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, काकोरी काण्ड की ९० वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  8. व्यथा है ये भूख कि
    भटकते हुए इंसान की
    उम्दा हिमकर जी

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  9. sundar n sarthak..behad umda..

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  10. भूख इन्सान को इन्सान को दो राहों पर ल कर खड़ा कर देती है ।

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  11. बहुत अच्छा लिखा है आपने ।

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  12. भूख आदमी को
    बना देती है लाचार
    करवाती है अपराध
    मंगवाती है भीख
    बिकवाती है ज़िस्म
    नहीं कर सकता कोई
    भूख की अवहेलना
    क्योंकि मरने से अधिक
    श्रेयस्कर है जीते रहना।
    बहूत बढिया...

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  13. भूख आदमी की सबसे बड़ी लाचारी है...बहुत सार्थक और मर्मस्पर्शी रचना...

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  14. शत-प्रतिशत सत्य लिखा है.

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  15. सच की अभिव्यक्ति है ये रचना ... सच है की खाली पेट खूनी क्रान्ति को जनम देता है ...

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  16. saty kaha badhiya rachana !

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  17. भूख आदमी की सबसे बड़ी लाचारी है

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