Thursday, 24 September 2015

सौदा



गई रात ख्यालों में
देने लगा कोई दस्तक
पूछा- कौन ?
बोला-सौदागर
इतनी रात गए कैसे?
सौदा करने
कैसा सौदा?
ज़मीर का- बेचोगे?
बदले में क्या दोगे?
चमचमाते सोने के कुछ टुकड़े।


© हिमकर श्याम 

(एक पुरानी रचना)

चित्र गूगल से साभार

11 comments:

  1. बहुत खूब!ज़मीर का सौदा होना आजकल आम बात है..

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  2. आज ज़मीर किसके पास बचा है...बेच चुके हैं सभी

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  3. बहुत सुंदर

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  4. जमीर का सौदा , बहुत बढ़िया रचना ।

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  5. आज के जमाने में सौदा बुरा तो नहीं ... जमीर नहीं होगा तो पश्ताताप भी नहीं होगा ...

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  6. अच्‍छा है यह सौदा। कमाल की रचना।

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  7. बहुत सुंदर..ज़मीर का सौदा होना आजकल आम बात है..

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  9. हाँ सच में ..सबसे आसान और विक्रय के हिसाब से श्रेष्ठ ...वही रह गया है आजकल. सुन्दर रचना.

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  10. सराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का आभार! सादर

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