गई रात ख्यालों में
देने लगा कोई दस्तक
पूछा- कौन ?
बोला-सौदागर
इतनी रात गए कैसे?
सौदा करने
कैसा सौदा?
ज़मीर का- बेचोगे?
बदले में क्या दोगे?
चमचमाते सोने के कुछ टुकड़े।
देने लगा कोई दस्तक
पूछा- कौन ?
बोला-सौदागर
इतनी रात गए कैसे?
सौदा करने
कैसा सौदा?
ज़मीर का- बेचोगे?
बदले में क्या दोगे?
चमचमाते सोने के कुछ टुकड़े।
© हिमकर श्याम
(एक पुरानी रचना)
चित्र गूगल से साभार
(एक पुरानी रचना)
चित्र गूगल से साभार
बहुत खूब!ज़मीर का सौदा होना आजकल आम बात है..
ReplyDeleteआज ज़मीर किसके पास बचा है...बेच चुके हैं सभी
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजमीर का सौदा , बहुत बढ़िया रचना ।
ReplyDeleteआज के जमाने में सौदा बुरा तो नहीं ... जमीर नहीं होगा तो पश्ताताप भी नहीं होगा ...
ReplyDeleteअच्छा है यह सौदा। कमाल की रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर..ज़मीर का सौदा होना आजकल आम बात है..
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हाँ सच में ..सबसे आसान और विक्रय के हिसाब से श्रेष्ठ ...वही रह गया है आजकल. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteoh...kitni sarthak rachna..
ReplyDeleteसराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का आभार! सादर
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