Saturday 11 October 2014

कोई जादू लगे है ख़यालात भी

खूब होती शरारत मेरे साथ भी
सब्र को अब मिले कोई सौगात भी

रंजिशे और नफरत भुला कर सभी
हो कभी दिल से दिल की मुलाक़ात भी

है बला की कशिश और लज़्ज़त जुदा
कोई जादू लगे है ख़यालात भी

फ़ासले अब मिटें, बंदिशें सब हटें
प्यार की छांव में बीते दिन-रात भी

है लबों पे दुआ गर सुनो तुम सदा
हो अयाँ आंखों से दिल के जज़्बात भी

चाहतों से महकता रहे सहने दिल
हम पे रहमत करे अब ये बरसात भी

दूर रख इन ग़मों को चलो कुछ हँसे
वक़्त के साथ बदलेंगे हालात भी

अयाँ: जाहिर, सहन: आँगन

© हिमकर श्याम

(चित्र गूगल से साभार)

20 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति

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  2. चर्चा मंच पर मेरी रचना लेने के लिए तहे दिल से शुक्रिया...

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया

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  4. Bahut lajawaaab prastuti ...!!

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया...

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  5. भाव प्रवण रचना जो दिल को छू गई। मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है।सुप्रभात।

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    1. हार्दिक अभिनन्दन. प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.

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  6. फ़ासले अब मिटें, बंदिशें सब हटें
    प्यार की छांव में बीते दिन-रात भी..
    प्यार हो तो बंदिशें कहाँ रह पाती हैं ... हर शेर लाजवाब है ... उम्दा ग़ज़ल ...

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  7. दूर रख इन ग़मों को चलो कुछ हँसे
    वक़्त के साथ बदलेंगे हालात भी
    बहुत ही सुन्दर गजल.....

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  8. फ़ासले अब मिटें, बंदिशें सब हटें
    प्यार की छांव में बीते दिन-रात भी------
    वाह बहुत खूब---
    बेहद सुंदर और मन को छूती गजल
    सादर

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  9. फ़ासले अब मिटें, बंदिशें सब हटें
    प्यार की छांव में बीते दिन-रात भी..
    ...... लाजवाब है ... उम्दा

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  10. बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति ....... सारे शेर उम्दा

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