अखबारों में नहीं दिखता
उस आदमी का चेहरा
मीडिया को नहीं लुभाती
हाशिए के लोगों की खबर
उनकी छोटी-बड़ी परेशानियां
पीड़ा और हताशा
मीडिया को भाती है
हर चटखदार खबर
जिससे मिलती है
टीआरपी को बढ़त
कमाते हैं सब मुनाफा
भुनाते हैं सब गरीबी
करते हैं सब झूठा वादा
बेचते हैं मानवीय भावनाएँ
अपनी सुविधानुसार
गढ़ते हैं परिभाषाएँ
उड़ाते हैं गरीबों का मजाक
'स्लम' के बच्चों की तुलना
करते हैं डॉग से, बनाते हैं
स्लम डॉग मिलेनियर
मचाते हैं धूम, पाते हैं ऑस्कर
मनाया जाता है ज़श्न
गणतंत्र का
ख़ूब दी जाती है दुहाई
जनतंत्र की
खाई जाती है कसमें
संविधान की
टटोलता नही है कोई
जन-गण के मन को
अनसुनी है जिसकी आवाज़
सुधरे नहीं जिसके हालात
खड़ा है जो भीड़ में
विस्मित और निराश
देखता है दूर से तमाशा
घुटता रहता है चुपचाप ।
© हिमकर श्याम
(चित्र गूगल से साभार)
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (27-01-2015) को "जिंदगी के धूप में या छाँह में" चर्चा मंच 1871 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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गणतन्त्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चामंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद!
Deleteसच है और चिंतनीय भी
ReplyDeleteआम जनता के बारे में कोई भी नहीं सोचता
ReplyDeleteखड़ा है जो भीड़ में
ReplyDeleteविस्मित और निराश
देखता है दूर से तमाशा
घुटता रहता है चुपचाप ।
सार्थक प्रस्तुति।
स्वागत है आपका...हार्दिक आभार!!
Deleteगहरी और सच ... सार्थक रचना है ... गणतंत्र तो आ गया लेकिन तंत्र कहीं खो गया है आज ... गण की असल चिंता किसी को नहीं ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteएकदम सच बयां करती हुई अनुपम रचना...... बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
मार्मिक
ReplyDeleteस्वागत है आपका...हार्दिक आभार!!
Deleteतंत्र के जाल में आज गण कहीं गुम हो गया है, फिर कैसा गणतंत्र? बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक.
ReplyDeleteटटोलता नही है कोई
ReplyDeleteजन-गण के मन को
अनसुनी है जिसकी आवाज़
प्रिय हिमकर जी बहुत सुंदर ..मन को छूती हुयी रचना.... काश लोग आँखें अब भी खोलें ....
आप को भी वसंत पंचमी की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं
भ्रमर ५
मार्मिक रचना .
ReplyDeleteगोस्वामी तुलसीदास
स्वागत है आपका...हार्दिक आभार
Deleteकटु , पर सत्य
ReplyDeleteहकीकत रेखांकित करती रचना
बेहद मार्मिक कविता। यही दुुआ है कि यह गरीबों के लिए सार्थक सिद्ध हो जाए।
ReplyDeleteस्वागत है आपका...हार्दिक आभार!!
Delete@ Vandana ji, Harshita ji, Digamber Naswa ji, Shanti Garg ji, प्रसन्न वदन चतुर्वेदी जी, Kailash Sharma ji, राजीव कुमार झा जी, Bhramar ji, डॉ. मोनिका शर्मा जी, आप सबों का आभार!!
ReplyDeleteऔर हमारे नेता तो इसमे सबसे पारंगत बने हुए हैं.
ReplyDeleteसही कहा...ब्लॉग को समय देने और प्रतिक्रिया के लिए आभार
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